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षड्दर्शनेषु प्रमाणप्रमेयसमुच्चयः
अथ प्रमाणम्
तस्य सामान्यलक्षणम्- अनधिगतार्थपरिच्छित्तिः प्रमाणम्। उपायो वा सन्निकर्षेन्द्रियार्थादि। 'सन्निहिततदर्थे यथार्थविज्ञानं प्रत्यक्षम्'। प्रत्यक्षस्येदं लक्षणम्। तन्मते प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणम्।
ननु चोक्तम्-'असन्निहितार्थमनुमानम्। तच्च परमतानुसारेण न स्वमतापेक्षयेति स्थितमिति लोकायतानां संक्षेपत: प्रमाणप्रमेयस्वरूपमिति।
इति लोकायतिकमतम् ।। इति सर्वमतसमुच्चयमिममद्भुतवाक्यनिबद्धं शिष्य प्रशिष्याणां विकाशार्थमनंतवीर्याचार्यश्चक्रे सिद्धांतप्रवेशकं [ श्रीअनन्तवीर्या
चार्यस्पत्ताः ] इति सर्वमतं समाप्तम्।।
सन्दर्भग्रन्थ सूचिः १. जैमिनिसूत्र
- ओरियन्टल इंस्टीट्यूट, बड़ौदरा २. तत्त्वार्थसूत्र
- आचार्य उमास्वामी
श्री गणेशवर्णी दि. जैन संस्थान
नरिया, वाराणसी। ३. न्यायबिन्दु
-- धर्मकीर्ति,
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी। ४. न्यायसूत्रम्
गौतम,
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी। ५. प्रमेयरत्नमाला
- लघुअनन्तवीर्याचार्य,
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी। ६. प्रशस्तपादभाष्य
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी। ७. वैशेषिकसूत्र
- कणाद निर्णयसागर प्रेस, बम्बई। ८. बृहस्पति सूत्र (चार्वाक दर्शन) ९. शावरभाष्य
- आनन्दाश्रम, पूना। १०. सर्वदर्शन संग्रह
- माधवाचार्य,
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वराणसी। ११. सांख्य कारिका
चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वारासी। १२. सिद्धिविनिश्चय-आ. अकलंक, - टीका -अनंतवीर्य,
भारतीयज्ञानपीठ, काशी। १३. षड्दर्शन समुच्चय - आ. हरिभद्र,
भारतीय ज्ञानपीठ, काशी।
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