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अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ में दार्शनिक चिन्तन के विकास के अध्ययन, सभी दार्शनिक सम्प्रदायों एवं सिद्धान्तों के प्रवर्तक आचार्यों एवं उनके ग्रन्थों का परिचयात्मक विश्लेषण हुआ है। इसके बाद करतलध्वनि के बीच महामहिम राज्यपाल श्री सूरजभान जी ने ग्रन्थ को लोकार्पित किया । ग्रन्थकार प्रो. राममूर्ति शर्मा जी ने प्रशासक, चिन्तनपरायण, परमसम्माननीय महामहिम राज्यपाल जी के प्रति ग्रन्थ के लोकार्पण के लिए कृतज्ञता ज्ञापन किया ।
इसके बाद महामहिम राज्यपाल महोदय ने मूर्धन्य विद्वानों को चन्दना - नुलेपन, माल्यार्पण एवं उत्तरीय वस्त्र प्रदान करते हुए सम्मानपत्र एवं रू. ५१०० की धनराशि प्रदान की। सम्मानित होने वाले विद्वानों के नाम निम्नलिखित हैंप्रो. कृष्णचन्द्र द्विवेदी, प्रो. चन्द्रशेखर शुक्ल, डॉ. एस. रङ्गनाथ, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो. व्रजवल्लभ द्विवेदी, प्रो. पारसनाथ द्विवेदी (पुराण), प्रो. श्रीकृष्ण सेमवाल, डॉ. रामरङ्ग शर्मा, प्रो. वागीशदत्त पाण्डेय, प्रो. आद्या प्रसाद मिश्र, प्रो. भोलाशङ्कर व्यास, प्रो. लक्ष्मी नारायण तिवारी, प्रो. हर्षस्वरूप शास्त्री, डॉ. हरिश्चन्द्र मणि त्रिपाठी, प्रो. ब्रह्मदेव नारायण शर्मा आदि प्रमुख हैं। इसी क्रम में वेदान्तादि शास्त्रों के मूर्धन्य विद्वान् वेदान्तविभाग के आचार्य प्रो. पारसनाथ द्विवेदी जी को सर डॉ. राधाकृष्णन् पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सम्मानित करने वालों में महामहिम राज्यपाल के साथ-साथ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वाई. सी. सिम्हाद्रि एवं प्रो. राममूर्ति शर्मा जी भी सम्मिलित थे।
मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए महामहिम राज्यपाल ने कहा कि भारतीय दर्शन की चिन्तनधारा ग्रन्थ का लोकार्पण करते हुए मैं हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। भारतीय दर्शन मानवतावादी दर्शन है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना होने के कारण समस्त विश्व को एक सूत्र में बाँधने की इसमें क्षमता है। विद्वानों को सम्मानित करते हुए अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हुए उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व की दृष्टि संस्कृत की ओर लगी है। अमेरिका के कम्प्यूटर वैज्ञानिक भी अनुभव कर रहे हैं कि संस्कृत ही कम्प्यूटर के लिए सक्षम भाषा हो सकती है। संस्कृत के उत्थान के लिए हर सम्भव प्रयास होना चाहिए। प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया । सभा की परिणति 'पाणिनि कन्या महाविद्यालय' की कन्याओं के राष्ट्रगान से हुई।
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