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(१४) इसके पूर्व भी रजतजयन्ती, म.म.गोपीनाथकविराज, विश्वसंस्कृतसम्मेलन एवं शङ्कराचार्य आदि विशेषाङ्क प्रकाशित हुआ है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री राणाप्रताप सिंह ने आगत अतिथियों एवं सम्पूर्ण सहयोगियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया। सभा का सञ्चालन पण्डित श्री शिवजी उपाध्याय ने किया। सामूहिक राष्ट्रगान से सभा का विसर्जन हुआ।
[ख] चतुर्दिवसीय षड्दर्शन-सङ्गोष्ठी 'संस्कृतवर्ष' के उपलक्ष्य में आयोजित समारोहों के क्रम में १९-२२ नवम्बर, १९९९ तक विश्वविद्यालय द्वारा शताब्दी-भवन में चतुर्दिवसीय षड्दर्शनसङ्गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें माननीय कुलपति जी द्वारा सङ्कल्पित दो सौ में से २५ विद्वानों को सम्मानित करने का कार्यक्रम भी आयोजित हुआ।
___ इस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा, मुख्य अतिथि महामहिम राज्यपाल श्री सूरजभान जी एवं सम्मानित अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वाई.सी. सिम्हाद्रि तथा विशिष्ट सम्मानित अतिथि डॉ. पी.सी. पतञ्जलि जी रहे। महामहिम राज्यपाल महोदय ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम के शुभारम्भ की विधिवत् घोषणा की। इसके बाद कुलपति जी ने महामहिम राज्यपाल महोदय को उत्तरीय एवं नारिकेल प्रदान करते हुए माल्यार्पण कर स्वागत अभिनन्दन किया।
तदनन्तर 'भारतीय दर्शन की चिन्तनधारा' ग्रन्थ के लोकार्पण का कार्य प्रारम्भ हुआ। ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार का परिचय कराते हुए प्रो. श्रीकान्त पाण्डेय ने बताया कि इस ग्रन्थ के महनीय लेखक माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा जी हैं। आपने अनेकों ग्रन्थों के लेखन का कार्य सम्पन्न किया है, जिसमें 'शङ्कराचार्य, उनके मायावाद तथा अन्य सिद्धान्तों का आलोचनात्मक अध्ययन', 'विश्व-संस्कृति', 'वैदिक-साहित्य का इतिहास', 'न्यायवैशेषिक एवं चिन्तन' आदि प्रमुख हैं।
आप विश्वसंस्कृतसम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। 'भारतीय दर्शन की चिन्तनधारा' एक महनीय ग्रन्थ है। इसमें ऋग्वेद से प्रारम्भ कर आधुनिक काल तक के दार्शनिक चिन्तन का अपूर्व विश्लेषणात्मक
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