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कसायपाहुडसुत्तं : हिन्दी भावानुवाद 1) पंचम पूर्व में दशम वस्तु में, तृतीय पेजपाहुड में यह कसायपाहुड है । 2) इसमें एक सौ अस्सी गाथा पन्द्रह अर्थों में विभक्त हैं। जिस अर्थ में जितने
गाथा सूक्त हैं, उन्हें कहूँगा। 3) प्रेयोद्वेष, स्थिति और अनुभाग विभक्ति तथा बन्धक अर्थात् बन्ध और संक्रम,
इन पाँच अर्थों में तीन-तीन गाथा जानना चाहिए। 4) · वेदक में चार, उपयोग में सात, चतुःस्थान में सोलह और व्यंजन में पाँच
गाथा हैं। 5) दर्शनमोह की उपशामना में पन्द्रह गाथा हैं। दर्शनमोह की क्षपणा में पाँच
सूक्त गाथा हैं। 6) संयमासंयम की लब्धि तथा चरित्र को लब्धि, इन दो में एक ही गाथा है।
चरित्रमोह-उपशामना में आठ गाथा हैं। 7) चरित्रमोह की क्षपणा के प्रस्थापक में चार, संक्रमण में चार, अपवर्तना
में तीन और कृष्टीकरण में ग्यारह गाथा हैं । 8) क्षपणा में चार, क्षीणमोह में एक गाथा है। एक गाथा संग्रहणी में है।
इस प्रकार चरित्रमोह-क्षपणा अधिकार में कुल अट्ठाईस गाथा हैं । 9) कृष्टि-सम्बन्धी गाथाओं में वीचार विषयक एक, संग्रहणी सम्बन्धी एक,
क्षीणमोह विषयक एक और प्रस्थापक से संबद्ध चार गाथा, ये सात गाथाएँ हैं।
इनके अतिरिक्त शेष सभाष्य गाथा हैं। 10) संक्रामण सम्बन्धी चार गाथा, अपवर्तना विषयक तीन, कृष्टि से सम्बन्धित
दश और कृष्टि क्षपणा विषयक चार, ये इक्कीस सूक्त गाथा हैं। अन्य भाष्य
गाथा हैं, उन्हें सुनो। 11- इक्कीस सूक्त गाथाओं की भाष्य रूप गाथाओं की संख्या क्रमशः पाँच, 12) 'तीन, दो और छह,' चार, तीन, तोन, एक, चार, तीन, दो, 'पांच, एक,
छह', तीन, चार, दो, चार, चार, दो, पाँच, एक, एक, दश और दो है। 13. अर्थाधिकार इस प्रकार हैं-१. प्रेयोद्वेषविभक्ति, २. स्थिति, ३. अनुभाग, 14) ४. अकर्मबन्ध की अपेक्षा बंधक, ५. कर्मबंधक की अपेक्षा बंधक, ६. वेदक,
संकाय-पत्रिका-२
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