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श्रमणविद्या 243) चरिमे बादररागे णामागोदापि वेदणीयं च ।
वस्सस्संतो बंधदि दिवसस्संतो य जं सेंसं ॥ 244) जं चावि संछुहंतो खवेइ किट्टि अबंधगो तिस्से।
सुहमम्हि संपराए अबंधगो बंधगियराणं ।। 245) जाव ण छदुमत्थादो तिण्हं घादीण वेदगो होइ ।
अधणंतरेण खइया सव्वण्ह सव्वदरिसी य ॥
235-44, Cf. गा. 128, 136, 138, 139, 140, 143, 144, 145, 209, 217.
संकाय-पत्रिका-२
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