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श्रमणविद्या
166 ) कदिसु च अणुभागेसु च द्विदीसु वा केत्तियासु का किट्टी । सव्वा वा द्विदीच आहो सव्वासु पत्तेयं ॥
167) किट्टी च हिंदीविसेसेस असंखेज्जेसु नियमसा होदि । या अणुभागे च होदि हु किट्टो अनंते ॥
168) सव्वाओ किट्टीओ बिदियट्ठिदीए दु होंति सव्विस्से । जंकिट्ट वेदयदे तिस्से अंसो च पढमाए । 169) किट्टी च पदेसग्गेणणुभागग्गेण का च कालेण । अधिक समाव हीणा गुणेण किंवा विसेसेण ॥ 170) बिदियादो पुण पढमा संखेज्जगुणा भवे पदेसग्गे । बिदियादो पुण दिया कमेण सेसा विसेसहिया || 171) बिदियादो पुण पढमा संखेज्ज गुणा दु वग्गणग्गेण । बिदियो पुणदिया कमेण सेसा विसेसहिया |
172) जा हीणा अणुभागेण अहिया सा वग्गणा पदेसग्गे । भागेणातिमेण दु अधिगा हीणा च बोद्धव्वा ॥
173) कोधादिवग्गणादो सुद्ध कोधस्स उत्तरपदं तु । सो अनंतभागो नियमा तिस्से पदेसग्गे ||
174) एसो कमो य कोधे माणे नियमा च होदि मायाए । लोभम्हिच किट्टीए पत्तेगं होदि बोद्धव्वो ।
17 ) पढमा च अनंतगुणा बिदियादो नियमसा हि अणुभागो । दिया दो पुबिदिया कमेण सेसा गुणेण अहिया || 176) पढमसमयकिट्टीणं कालो वस्सं व दो व चत्तारि । अट्ट च वस्साणि द्विदी बिदियट्टिदीए समा होदि ॥
177 ) जं किट्टि वेदयदे जवमज्झं सांतरं दुसु ट्टिदी | पढमा जं गुणसेढी उत्तरसेढी य बिदिया दु || 178) बिदियट्ठिदि-आदिपदा सुद्ध पुण होदि उत्तरपदं तु । सेसो असंखेज्जदिमो भागो तिस्से पदेसग्गे ॥
संकाय पत्रिका - २
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