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प्रकार किसी ने निर्माण किया है ।
प्रश्न उपस्थित होते हैं कि सृष्टि की सत्ता सत्य है
या मिथ्या है, नित्य है या अनित्य है ? जड़ है या यह सादृश्य ठीक नहीं है। यदि हम इस तर्क चेतन है ? यदि परमात्मा से सृष्टि विधान माना के प्राधार पर चलते हैं, कि प्रत्येक वस्तु, पदार्थ जाता है तो या तो परमात्मा की चेतन रूप की या द्रव्य का कोई न कोई निर्माता होना जरूरी है परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी आदि को भी चेतन तो फिर प्रश्न उपस्थित होता है कि इस जगत के मानना पड़ेगा अथवा पृथ्वी आदि के अनुरूप परनिर्माता परमात्मा का भी कोई निर्माता होगा मात्मा को जड़ मानना पड़ेगा । सत्य स्वरूप ब्रह्म गौर इस प्रकार यह चक चलता जावेगा। अन्ततः से जगत की उत्पत्ति मानने पर ब्रह्म का कार्य इसका उतर नहीं दिया जा सकता।
असत्य कैसे हो सकता है ? यदि जगत की सत्ता
सत्य है तो उसका अभाव कैसा ? जगत को स्वप्न कुम्हार भी घड़े को स्वयं नहीं बनाता । वह एवं माया रचित गन्धर्व नगर के समान पूर्णतया मिट्टी आदि पदार्थों को सम्मिलित कर उन्हें एक मिथ्या एवं असत्य मानना क्या संगत है ? विशेष रूप प्रदान कर देता है। .
क्या जगत को माया के विवर्त रूप में स्वीकार यदि ब्रह्म से सृष्टि विधान इस प्राधार पर कर रज्जु में सर्प अथवा शक्ति में रजत की भांति माना जाता है कि ब्रह्म अपने में से जगत को कल्पित माना जा सकता है ? कल्पना गुण है । प्राकार बनकर आप ही क्रीड़ा करता है तब पृथ्वी गुण तथा द्रव्य की पृथकता नहीं हो सकती। आदि जड़ के अनुरूप ब्रह्म को भी जड़ मानना स्वप्न बिना देखे या सुने नहीं आता । सत्य पदार्थों पड़ेगा अथवा ब्रह्म को चेतन मानने पर पृथ्वी आदि के साक्षात् सम्बन्ध से वासनारूप ज्ञान प्रात्मा में को चेतन मानना पड़ेगा।
स्थित होता है।
यदि ब्रह्मा ने सष्टि विधान किया है तो स्वप्न में उन्हीं का प्रत्यक्षरण होता है। स्वप्न इसका अर्थ यह है कि सृष्टि विधान के पूर्व केवल और सुषुप्ति में बाह्य पदार्थों का प्रज्ञान मात्र होता ब्रह्मा का अस्तित्व मानना पड़ेगा। इसी आधार है अभाव नहीं। पर शून्यवादी कहते हैं कि सृष्टि के पूर्व शून्य
____ इस कारण जगत को अनित्य भी नहीं माना था, अन्त में शून्य होगा, वर्तमान पदार्थ का
जा सकता । जब कल्पना का कर्ता नित्य है तो अभाव होकर शून्य हो जावेगा तथा शांक रवेदांती
उसकी कल्पना भी नित्य होनी चाहिए अन्यथा वह ब्रह्म को विश्व के जन्म, स्थिति और संहार का
भी अनित्य हुआ। कारण मानते हुए भी' जगत को स्वप्न एवं माया रचित नगर के समान पूर्णतया मिथ्या एवं असत्य जैसे सुषुप्ति में बाह्य पदार्थों के ज्ञान के मानते हैं । क्या सृष्टि विधान का कारण परमा- अभाव में भी बाह्य पदार्थ विद्यमान रहते हैं वैसे स्मा ही है ? क्या सृष्टि की प्रादि में जगत न था, ही प्रलय में ही जगत के बाह्य रूप के ज्ञान के केवल ब्रह्म था तथा इसका अस्तित्व क्या शून्य हो अभाव में भी द्रव्य वर्तमान रहते हैं। कोयला को जावेगा ? आदि के सम्बन्ध में विचार करते समय जितना चाहें जलावें, वह राख बन जाता है, उस महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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