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"मेरा अभिमत है कि यह तो 'एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति ......."वाली उक्ति चरितार्थ करती है। वर्ष में एक ही अंक निकालते हैं, पर मानसिक भोजन इतना उत्कृष्ट और सुस्वादु रहता है कि जिसका रसास्वादन महिनों तक आनन्द विभोर किये रहता है।"
कुन्दनलाल जैन एम. ए (संस्कृत, हिन्दी) एल. टी. साहित्य शास्त्री
प्रिन्सिपल शिक्षा निदेशालय, दिल्लीप्रशासन, दिल्ली । "स्मारिका का स्तर पूर्व स्मारिकाओं जैसा ही है, बल्कि यह स्मारिका उनसे भी अधिक सामग्री और विचार प्रदान करती है । कई लेख बड़े ही महत्वपूर्ण और नये चिन्तन को लिए हुए हैं ।
स्मारिका के समस्त लेख चुने हुये हैं। आपका सम्पादकीय और सम्पादकीय टिप्पणियां मर्मस्पर्शी हैं । आपको भी मेरा हृदय से धन्यवाद ।
इस यज्ञ की प्रारम्भक राजस्थान जैन सभा को भी कम साधुवाद नहीं, उसका यह प्रयास श्रेयस्कर है।
डा. दरबारीलाल कोटिया न्यायाचार्य, वाराणसी। "विपुल सामग्री जुटाई है आपने । प्रत्येक लेख में सम्पादकीय टिप्पणी उल्लेखनीय है। इस सुन्दर प्रयास के लिये आप निश्चित ही बधाई के सुपात्र हैं।"
डा. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया एम. ए. पीएच. डी., डी. लिट् मानद संचालक, जैन शोध अकादमी
प्रागरा रोड, अलीगढ़।
__ "महावीर जयन्ती स्मारिका पढ़कर निहाल हो गया । साहित्यिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक व शोध सामग्री की अनुपम थाती संजोये स्मारिका का जितना भी बखान करूं थोडा है। सर्वाङ्गीण सुन्दर सलोनी यह स्मारिका यथा नाम तथा गुण की गरिमा से समलंकृत है। कृपया साधुवाद स्वीकार करने का कष्ट करें।"
डा. शोभनाथ पाठक एम. ए. पीएच. डी. साहित्यरत्न
__ मेघनगर (म. प्र.) "महावीर जयन्ती स्मारिका 1977 अपनी पूर्व परम्परा में रहते हुये भी एक उज्ज्वल प्रयत्न है । यह हमें शोध सामग्री ही प्रदान नहीं करती, वरन विशाल राष्ट्र में भगवान महावीर और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के पालन एवं अनुपालन की गतिविधियों का सचित्र व्योरा भी प्रस्तुत करती है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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