________________
"इसके पांच खण्डों में अन्तिम खण्ड के 90 पृष्ठ केवल विज्ञापनों के हैं, जिससे राजस्थान जैन सभा और इसके कार्यकर्ताओं की लोकप्रियता का परिचय मिलता है।
लेखों पर प्र० सम्पादक की गागर में सागर की सी टिप्पणियां उल्लेखनीय हैं । प्रस्तुत विशेषांक पठनीय एवं संग्रहणीय है।"
सम्मति वाणी मासिक इन्दौर, मई1977
“यह वार्षिक स्मारिका साहित्य सेवा में निष्ठा और लगन के साथ 14 वर्ष से अग्रसर है। सुयोग्य सम्पादक महोदय ने इसके स्तर को सदैव सुरक्षित रखा है।
इतने सुन्दर बोधपूर्ण साहित्य का संकलन करने के लिये सम्पादक का प्रयत्न सराहनीय है।"
सन्मति संदेश मासिक, नई दिल्ली जुलाई 77
"जयपुर में वीर जयन्ती पर स्मारिका प्रकाशन की परम्परा का प्रारम्भ पूज्य गुरुदेव पं० चैनसुखदासजी द्वारा किया गया था, उसी कडी में यह 14 वां पुष्प है। प्रस्तुत सभी लेखों के रचनाकार अधिकारी विद्वान हैं फलतः यह स्मारिका सन्दर्भ ग्रंथ के रूप में मानी जानी चाहिये। हर दृष्टि से स्मारिका पठनीय, मननीय और संग्रहणीय है । लेख मंगाकर सुन्दर ढंग से चयन करना, प्रत्येक लेख को पूरा पढ़कर उसका संक्षिप्त सार लिखना और वह भी अल्प समय में-सचमुच यह कार्य भाई पोल्याकाजी के कठिन परिश्रम का द्योतक है।
प्रत्येक पुस्तकालय में इसका संग्रह अपेक्षणीय है।"
वीर वाणी पाक्षिक जयपुर-3 मई 1977
"उत्तमोत्तम लेखादि से युक्त जयपुर में प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाली यह वृहत्काय स्मारिका वास्तव में बेजोड होती है । लेखों पर प्रारम्भिक सम्पादकीय परिचयात्मक टिप्पणी सुन्दर तथा महत्वपूर्ण होती है । इसी प्रकार की टिप्पणियां कविताओं पर भी होनी चाहिये।
निश्चय और व्यवहार नय के सम्बन्ध में सम्पादकीय सुन्दर है।"
ज्ञान कौति लखनऊ (तीसरा मक) विद्वानों, मनीषियों से प्राप्त पत्र
"स्मारिका बहुत सुन्दर निकली है । उसमें आपने बड़ी उपयोगी सामग्री का संचय किया है। भगवान महावीर के जीवन और सिद्धांतों पर अच्छा प्रकाश पडता है-उसके पीछे आपका परिश्रम और सूझबूझ है । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये ।"
यशपाल जैन संपादक-जीवन साहित्य सस्ता साहित्य मण्डल, दिल्ली।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org