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" कुल मिलाकर भारत के प्रसिद्ध जैनाजैन विद्वानों द्वारा लिखित 82 लेख तथा कवितायें इसमें है । लेखों पर प्रधान सम्पादक के परिश्रमपूर्वक लिखे गये टिप्पण हैं जो लेखों की विषय-वस्तु के समझने में सहायक हैं । सम्पादकीय भी पठनीय है। पग पग पर सम्पादक की सूझ-बूझ और परिश्रम का दिग्दर्शन होता है"
दैनिक नवज्योति जयपुर दि. 28-8-77
"महावीर जयन्ती पर्व पर यों तो अनेक स्मारिकायें प्रकाशित हुईं किन्तु राजस्थान जैन सभा जयपुर की यह साहित्यिक स्मारिका सामग्री की दृष्टि से बेहतर है ।
प्रकाशन की छपाई, सफाई सुन्दर हैं"
राष्ट्रदूत दैनिक जयपुर 11 सितo 77
"उर्दू में पूर्ण विकसित चन्द्र को चौदहवीं का चांद कहा जाता है, स्मारिकानों में प्रस्तुत स्मारिका सचमुच पूनम के चांद जैसी ही है ।
भव्य मुखपृष्ठ, उत्तम मुद्रण, साथ ही उच्च कोटि के सम्पादन से समृद्ध यह वृहत्काय स्मारिका जैन साहित्य के वर्तमान प्रकाशनों में अपना स्थान बनायेगी इसमें सन्देह नहीं ।
प्रधान सम्पादक महोदय के श्रम की छाप पूरी स्मारिका पर दिखाई देती हैं"
“बड़े आकार की लगभग 300 पृष्ठों की प्रस्तुत स्मारिका कुल मिलाकर एक शोध ग्रन्थ का रूप लिये हुये है । अधिकांश निबन्ध न केवल उपयोगो हैं, अपितु स्थायी मूल्यों के हैं । स्मारिकाएं बहुत प्रकाशित होती हैं, लेकिन वे मात्र तात्कालिक प्रयोजन स्मारिका अपना चिरन्तन मूल्य बनाये रखेगी । निश्चित ही मनीषा के लिये बधाई के पात्र हैं ।"
तक सीमित रह जाती हैं। लेकिन प्रस्तुत सम्पादक व प्रकाशक अपने श्रम तथा
ख
युगवीर साप्ताहिक पटना 26 मई 77
कथालोक मासिक दिल्ली मई 1977
"प्रस्तुत स्मारिका का सातत्य अपनी एक विशेषता है । स्व० पं. चैनसुखदासजी का यह बिरवा सिंचित होता रहता है, यह राजस्थान जैन सभा का कीमती योगदान है | सम्पादक निष्ठापूर्वक प्रतिवर्ष बिना किसी विवाद में पड़े, साधना तपस्या पूर्वक संपादन करके एक पठनीय वस्तु प्रदान करते हैं ।
सामग्री का चयन सुरुचिपूर्ण, खोजपूर्ण तथा ज्ञानवर्धक है ।"
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श्रमरण मासिक वाराणसी मई 1977
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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