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महावीर जयन्ती स्मारिका, 1977 लोकदृष्टि में
प्रातः स्मरणीय श्रद्धेय गुरुवर स्व० पं० चैनसुखदासजी को प्रेरणा से उन्ही के सम्पादकत्व में राजस्थान जैन सभा ने इस स्मारिका का प्रकाशन 16 वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और तब से यह महावीर जयन्ती के पावन अवसर पर दो वर्षों को छोड़कर प्रतिवर्ष निरन्तर प्रकाशित हो रही है ।
श्रद्धेय गुरुवर के पश्चात् उन्हीं के योग्य शिष्य श्रादरणीय अग्रज श्रीमान् भंवरलालजी पोल्याका के कंधों पर इस स्मारिका के संपादन का भार श्राया जिन्होंने सफलतापूर्वक पिछली एक दशाब्दी से इसको वहन किया हुआ है ।
यह स्मारिका भारत भर में निकलने वाली स्मारिकाश्रों में अपना शीर्ष स्थान रखती है । faद्वानों ने इसे सिर प्रांखों पर उठा के रखा है । इस सम्बन्ध में हर वर्ष उच्च कोटि के विद्वान् व पाठक गरण तथा समाचार पत्र पत्रिकार्य अपनी सम्मतियां प्रकट करते हैं तथा प्रा. पोल्याकाजी को बधाईयां देते हैं किन्तु श्रद्ध ेय गुरुवर की भांति ही स्व-प्रशंसा से दूर रहने वाले प्रा. पोल्याका जी ने कभी इन सम्मतियों को प्रशस्तियों को स्मारिका में प्रकाशित नहीं कराया । इस वर्ष मेरी बाल हठ ने अग्रजजी को सहमत करा ही लिया है । 1977 की स्मारिका के सम्बन्ध में कुछ उद्गार प्रस्तुत हैं ।
"यह पत्रिका शोध स्तर की है ।
प्रायः सभी लेखकों के लिये परिचयात्मक टिप्पणियां लिखकर सम्पादक ने पत्रिका को बहुत ही उपयोगी बनाया है । पत्रिका को चार खण्डों में विभाजित कर संपादक ने सूझ-बूझ का परिचय दिया है ।
पत्रिका की साज सज्जा एवं छपाई सुन्दर है । सम्पूर्ण पत्रिका जैन कला, संस्कृति एवं साहित्य के प्रति नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है"
राजमल जैन बेगस्या सहायक सम्पादक
"इसमें अनेक विद्वानों के लेख हैं जो सबके सब तथा सुरुचिपूर्ण स्मारिका निकालने के लिये, राजस्थान जैन
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नवभारत टाइम्स दि. 1 जून 1977
पठनीय तथा मननीय हैं ऐसी विद्वत्तापूर्ण सभा बधाई की पात्र है "
जयपुर इतवारी पत्रिका दि. 15 मई 1977
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