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कहानी
गाचर्य दिखने लगा था।
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अहसान
श्री सुरेश 'सरल' सरल कुढी, गढ़ाफाटक
जबलपुर (म. प्र.) 'बर्तन मल रही हो?' .
शेष थीं, अतः संध्या से फिर पूछने लगा-'ये लोग
बड़ी कड़ी और परिश्रमी होती हैं, सुबह बच्चा 'जी हां, महरी के पेट में दर्द है।'
होना है और शाम तक बर्तन मलती रहती हैं घरों 'दर्द?' सुधीर ने-दर्द का उच्चारण इस घर ।' तरह किया था, जैसे विश्व में पहली बार वह दर्द न होता तो वह कल सुबह तक मलती।' किसी महरी के पेट में दर्द की बात सुन रहा है। उसके चेहरे के भाव से यह स्पष्ट भी हो रहा था 'अच्छा ?' इस बार सुधीर के प्रश्न में बनाकि महरी जैसे तबके की श्रमिक पुत्रियों को घर वटी आश्चर्य दिखने लगा था। में बैठकर दर्द नहीं मनाना चाहिये । फिर बात मागे बढ़ाने की गरज से बोला- 'पेट में दर्द, बर्तनों से निवृत होकर संध्या ड्राइग रूम में
गई, सुधीर उसकी प्रतीक्षा करता हुआ, मूछों की
काली चमक निहार रहा था दर्पण में । संध्या ने - हा हा..... समय पूरा पूरा हो गया है।' उसके जूतों के बंध खोलते हुए कहा-'न हो तो सुधीर का मंतव्य संध्या समझ गई थी अतः बीच - डिलीवरी के बाद महरा के शिशु को कोई सस्ती में ही बोल पड़ी-'शायद कल-परसों तक डिलीवरी सी गिफ्ट अवश्य दीजिये ।' होना चाहिए।'
... क्या दे सकता हूं', कुछ सोचता सा सुधीर 'अच्छा तो आप लोग तारीख घण्टे मिनट कुर्सी पर बैठ गया, फिर, जैसे कुछ याद हो पाया सब कुछ नोट कर रखती है ?' सुधीर ने एक हो, ....... ठंड काफी - पड़ने लगी है, सोचता, शरारत उछाली थी।
.. हूं, दस रुपये की गरम बनियान खरीदकर दे दी ... - इसमें नोट करने की क्या बात है। नियति जावे ।। और स्मृति के बीच की बातें हैं ये ।'
'सात आठ में नहीं मिलती ? . सुधीर ने इस टापिक को यहीं छोड़ देना संध्या का प्रश्न पूरा नहीं हो पाया था कि पाहा, मगर शायद अभी कुछ जिज्ञासायें और मांजी ने घर में प्रवेश किया, संध्या का प्रश्न जैसे
क्या
.......'
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महावीर जयन्ती स्मारिका 28
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