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दूर से ही सुनती पा रही हो अतः दोनों की तरफ 'सुधीर भाई नमस्कार, कपड़े ले रहे हो क्या संकेत कर पूछने लनी-'क्या नहीं मिलती सात यहां से ?' पाठ रुपये में ?'
'नमस् ...........नमस्कार भाई।' इस नममां के प्रश्न, जिसमें जिज्ञासा के साथ सास- स्कार में नमस्कार कम शर्म ज्यादा थी। जैसे दूध सुलभ बहू को ताड़ने की धारणा भी सम्मिलित बादाम पीने वाला कलारी, में देख लिया गया हो। थी, पर सुधीर बोला-'मां महरी है न, उसके कुछ झेपते हुए सुधीर आगे बोला-अरे नहीं होने वाले बच्चे के लिए बनयान खरीदने की बात यार"" बस जरा या हा चल रही थी।"
'यों ही कैसे ? मैं तो भाभी को बतलाऊंगा कि 'क्या बन यान खरीदने के चक्कर में पड़े हो ?' भाईजान फुटपाथ से खरीदकर लाये हैं बनयान ।' मां ने मसले को जरूरत से ज्यादा सामान्य निरूपित करते हुए बतलाया 'यदि चौक-पर्व पर उसका
-"अबे भाभी को नहीं ले रहा' कहकर सुधीर बुलावा आये तो सीधे नगद पांच रुपये पहुंचा
पापोंग्राप अटपटा गया। उसका उच्चारण जाम देना ।' मां की वार्ता में घुला दम्भ संध्या के दम्भ
सा हो गया, उसे क्षणभर को लगा उसका स्तर से गाढ़ा प्रतीत हो रहा था। तब तक महरी
फुटपाथी है । अपने मित्र से बहुत हलका है । तब की आठ वर्षीय बच्ची ने पाकर हंसते-हंसते बताया।
. तक उसे कुछ सही. उत्तर याद आया । वाणी में "माई को लड़की हुई है।" इ ना कहकर वह
ठोसता और गंभीरता लाकर कहने लगा--'यार, ! चिड़िया की तरह उड़ गई । लड़की पैदा होने की हमारा
र हमारी महरी को बच्ची हुई है, मैं सोचता हूं कि बात सुनकर तीनों को दुःख हया । फिर माने एकाध दस-पद्रह रुपये की बनयान दे दूँ उसे, हिसाब लगाया-प्रब उसको पांच लडकियां हो गई ताकि ठंड से निपट सके।' सुधीर पांच-छः के स्थान भगवान का भी कैसा न्याय है, लड़का पहिले हुना
पर दस-पन्द्रह रुपये कहकर अपने आपको बड़ा था सो छीन लिया, अब देने का नाम नहीं लेते,
न दानी और स्वाभिमानी विज्ञापित कर रहा था गरीबी में गीला आटा कर रहे हैं उसका ? .
मित्र के सामने । मित्र के चले जाने के बाद सुधीर
ने हाथ में ली हुई बनयान जहां की तहां रख दी लड़की के जन्म की खबर से तीनों को दया और खाली हाथ घर भाग गया । दुकान से हटने हो पाई महरी पर । अतः दया दिखाते हुए मां के बाद उसे खुशी हुई थी कि एक से अधिक परि. बोली-ठीक है सुधीर पांच-छः रुपये की बनयान ला चित नहीं देख पाये उसे, वहां । उसने मां एवं पत्नी. देना, मैं पहुंचा दूगी उसके घर ।' सुधीर ने को बतलाया कि फूटपाथ पर भी दस रुपये से कम आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा-'मां पांच-छः रुपये में की बनयान नहीं मिलती । फिर उन्हें, मित्र के कहां मिलेगी ?' मां ने फिर सहजता से समाधान मिलने की घटना और अपना रोबीला उत्तर बतप्रस्तुत किया-'अरे पगले' आज कल सड़कों के लाते हुए अपनी योग्यता पर हंसता रहा । हंसतेकिनारे कितनी दुकानें लगती हैं कोट और बनियानों हंसते ही उसने कहा-- 'मां मुझे फुटपाथ से खरीदने की ?' मां का यह प्रश्न अपने आप में विशेष उत्तर में शर्म आती है, कोई फिर देख लेगा। न हो तो की परिभाषा सार्थक कर रहा था जिससे मां और महरी को कुछ पैसे देकर बोल देना कि वह खरीद संध्या को राहत सी मिली थी।
लाये एक बनयान ।' मां को यह प्रस्ताव अच्छा
: जयन्ती स्मारिका 78 ..
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