SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ जयपुर में भूतकाल में राजापों के शासन के समय जैनों और शवों में वाहे जितना विग्रह, द्वेष रहा हो किन्तु यहां के राजाओं ने कभी भी एक के प्रति पक्षपात और दूसरे के प्रति दुराव नहीं किया । यदि कभी किसी मिथ्या सूचना के आधार पर ऐसा हुआ मी तो सचाई के प्रकट होते ही तत्काल उसका परिमार्जन भी कर दिया गया। वे अपने धार्मिक ग्रन्थों के पठन के साथ-साथ जैन ग्रन्थों का अध्ययन भी करते थे । इसका प्रमाण है उनके वैयक्तिक संग्रहालय (पोथीखाना) में संग्रहीत सैकड़ों हस्तलिखित जैन ग्रन्य जिनमें से केवल कुछ का ही परिचय हमारे आग्रह पर विद्वान लेखक ने स्मारिका के पाठकों के लाभार्थ अपनी इन पंक्तियों में प्रस्तुत किया है। -- पोल्याका जयपुर पोथीखाने का हिन्दी जैन साहित्य -डॉ० प्रेमचन्द रांवका प्राध्यापक-राजकीय शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय, पनोहरपुर (जयपुर) 'पोथीखाना', जयपुर राज्य के भूतपूर्व शासकों द्वारा अपने राज्य को प्रान्तरिक शासनव्यवस्था के सम्यक् संचालन की दृष्टि से विभिन्न विभागों के रूप में स्थापित 36 कारखानों में से एक है । इसमें प्रारम्बेर एवं जयपुर के शासकों द्वारा समय-समय पर संगृहीत विभिन्न भाषाओं में विभिन्न विषयों की पाण्डुलिपियां सुरक्षित हैं। वस्तुतः यह उन शासकों का निजी पुस्तकालय है; जिसमें उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान-वर्द्धन हेतु विशाल परिमाण में साहित्य का संरक्षण एवं सम्वर्द्धन किया है । यह पोथीखाना विगत सातसौ वर्षों में सृजित एवं लिपिबद्ध अमुल्य साहित्य को अपने में समाविष्ट करता है । जो उक्त शासकों के अनुपम साहित्यानुराग का प्रतीक है। इस में आम्वेर एवं जयपुर राज्य के भू० पू० राजारों में मिर्जा राजा जयसिंह (वि. सं 1678-1724) से लेकर अन्तिम महाराजा मानसिंह द्वितीय (वि० सं० 1979-20 27) तक के समय में रचित एवं लिपिबद्ध साहित्य सुरक्षित है। पोथीखाने के ग्रन्थागार को निम्न संग्रहों में विभक्त किया गया है-1. खास मोहर संग्रह 2. पोथीखाना संग्रह 3. पुण्डरीक संग्रह और 4. म्यूजियम संग्रह प्रकाशित संग्रह। महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy