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ओंकारं बिन्दु संयुक्त....
*श्री नन्दकिशोर जैन एम० ए०
सम्पादक-"ज्ञानकीति"
चौक, लखनऊ
बिन्दु युक्त प्रोंकार जिसे, योगी जन नित प्रति ध्याते हैं । जिसकी भक्ति प्रसाद भव्यजन, काम मोक्ष सुख पाते हैं ।। जिसकी गुरु, गम्भीर, निरन्तर, ध्वनि सून पाप नसाते है। जग के अध-प्रक्षालक को हम, सविनय शीश नवाते हैं ।
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जिसकी महिमा सुर, नर गाते, तीर्थ समान बखानी है । मुनीश्वरों से पूजित ऐसी, सरस्वती जिन बानी है ।। दूर करें अज्ञान अधेरी, प्रांजें ज्ञान सलाई ज्यों । मोहित, बन्द नयन जो खोलें, वंदन ऐसे गुरुवर को ।।
(3) सकल कलुष विध्वंस करे जो, पथ कल्याण दिखाता है। धर्म समन्वित शास्त्र वही, मन भव्य-जनों के भाता है। वक्ता, श्रोता उभय पक्ष को, अरु जो शास्त्र प्रदाता है । पुण्य प्रकाशक, पाप प्रणाशक, जिन-वारगी सुखदाता है ।
गिरी सम श्री सर्वज्ञ देव मुख, मल रूप से आई है । गगाधर पुनि प्रति गणधरादि, ग्रन्थों की धार बहाई है ।। ऐसी पतित पावनी माता, सबको गले लगाती है । सावधान हो सुनिए प्रियवर, शान्ति हृदय सरस तो है ।।
(5) मंगल कारक महावीर प्रभु, गौतम गणधर मलल रूप। करें कुदकुदादिक मंगल, मंगल दा जिन धर्म अनूप ।। यह मंगल चित लाते सत्वर, पाप सभी गल जाते हैं । करते हैं कल्याण जीव का, संकट सभी नशाते हैं । इसीलिए तो सब धर्मो में, सर्व प्रधान बखाना है । जयतु-जयतु जय जय जिन शासन, सुख अरु शाँति खजाना है ।।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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