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ग्रहण करती है । डा०संकटाप्रसाद उपाध्याय ने लिखा है कि वाल्मीकीय रामकथा का प्रवाह इस प्रकार विमलसूरि के हाथों अनेक परिष्कारों- तिरस्कारों एवं ग्राविष्कारों के मार्ग से होता हुग्रा अपनी चरम परिरगति को प्राप्त होता है । ब्राह्मण परम्परा से प्रत्येक विलगाव साभिप्राय है और वह अभिप्राय है सभी मुख्य पात्रों का जैन होना दिखाना । इसके अतिरिक्त आधिकारिक कथा के बीच-बीच में जो जैन धर्म, शिक्षा, सृष्टि - व्याख्या, साधु-धर्म, वृत्तात, कर्म - सिद्धान्त, जैन- कर्मकाण्ड विवेचन मिलता है, वह सब विमल की प्रसूत नवीनता है । डा० हीरालाल जैन संस्कृति में जैन धर्म का योगदान) का विचारणीय है कि राम और लक्ष्मण तथा कृष्ण
पूर्वभव
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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आदि का
कल्पना से (भारतीय अभिमत
और बलदेव के प्रति जनता का पूज्यभाव रहा है व उन्हें अवतार - पुरुष माना गया है। जैनियों ने तीर्थकरों के साथ-साथ इन्हें भी त्रेसठ शलाका पुरुषों में आदरणीय स्थान देकर अपने पुराणों में विस्तार से उनके जीवन-चरित का वर्णन किया है । जो लोग जैन -पुराणों को हलकी और उथली दृष्टि से देखते हैं, वे इस बात पर हंसते हैं कि इन पुराणों में महापुरुषों को जैन मतावलम्बी माना गया है व कथाओं में व्यर्थ हेरफेर किए गये हैं । उनकी दृष्टि इस बात पर नहीं जाती कि कितनी श्रात्मीयता से उन्हें अपने भी पूज्य बना लिया गया है और इस प्रकार अपने तथा अन्य धर्मो, देश भाइयों की भावना की रक्षा की है ।
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