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के परस्पर प्रेम से ईर्ष्या होती है और लक्ष्मण की वाल्मीकि और तुलसी राम को वन यात्रामें कहीं, परीक्षा के लिए कोई देवता राम की मृत्यु की तैरते नहीं बताते परन्तु 'पउम चरिय' में राम बनघोषणा कर देता है जिसके कारण लक्ष्मण शरीर स्थित भयंकर नदी को तैर कर पार करते हैं । त्याग देते हैं । गुणभद्र में वाल्मीकि रामायण के चित्रकूट को जैन रामकथा में गरिमा नहीं मिली। धनुष यज्ञ, कैकयी हठ, राम-वनवास, पंचवटी, राम-लक्ष्मण तथा सीता का वनवास तथा क्रियाकदण्डक वन, जटायु, सूर्पणखा, खर दूषण, सीता लाप विमलसूरि में वाल्मीकि से सर्वथा वैभिन्न्य अपवाद आदि सन्दर्भो की चर्चा नहीं है।
की स्थिति रखता है। वाल्मीकि रामायण का सीता
हरण पंचवटी में होता है परन्तु जैन रामकथा में गुणभद्र की रामकथा दिगम्बर सम्प्रदाय की
दण्डक वन में । बालि जैन दीक्षा लेता है । 'पउम शोभा है परन्तु विमलसूरि दिगम्बर- श्वेताम्बर
चरिय' में राम-रावण युद्ध में सीता का भाई भामण्डल दोनों में मान्य है । स्वयम्भू विमल तथा रवि, दोनों
भी राम की मदद के लिए वाहिनी सहित पाता है। की रामकथा को अपना आधार बनाते हैं।
रावण का वध राम न करके लक्ष्मण के हाथों विमलसूरि ने वाल्मीकि की रामकथा में बड़ा उसका वध होता है। वहां के लवकुश यहां अनंगपरिवर्तन ला दिया है । कतिपय प्रसंग तथा पात्रों लवण तथा मदनांकुश हैं। नारद दोनों कथानों में का नामोनिशान नहीं मिलता । अनेक मौलिक तरो-ताजगी के साथ वर्तमान है । उद्भावनाएं तथा प्रसंग समाविष्ट हो गये हैं।
विद्याधर, राक्षस तथा वानरों के प्रति जैन विमलसरि को हिन्दनों की पौराणिक कथानों, दृष्टिकोण हिन्दुनों की रामकथा की अपेक्षतया अधिक धार्मिक क्रियाकलापों तथा ऋषियों-मुनियों से सरो- उदार एवं सहानुभूतिपूर्ण है। 'पउम चरिय' के कार नहीं । उनमें वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा ऋषि पच्चीसवें उद्देशक और 'पउम चरिउ' की बीसवीं शृग की चर्चा नहीं है । वाल्मीकि के राम मिथिला
संधि में रामकथा का शुभारम्भ है। दोनों में विद्याके मार्ग में ताड़का का वध करते हैं परन्तु 'पउम।
धर-राक्षस-वानर के वंशों के वर्णनों के विस्तारपूर्वक चरिय' में इसका कोई सत्र नहीं मिलता। राम- महत्व मिला है । 'रामायण' विद्याधर को देवयोनि परशुराम सम्वाद, श्रवण का आख्यान, मंथरा
मानती है परन्तु 'पउम चरिय' मानव । जैनों ने कैकयी-सम्वाद, स्वर्णमग प्रसंग और सेतबंध के इनको एक मानव कुल की विविध प्रणाखानों के वर्णनों का यहां अभाव है ।
रूप में देखा परखा है।
वाल्मीकि रामायण के कुछ सन्दर्भो को विमल- विमलसूरि की यह नवीन प्रसंगोद्भावना है सूरि थोड़े परिवर्द्धन के साथ स्वीकार करते हैं। कि राम-जन्म के पूर्व, दशरथ तथा जनक एक साथ वाल्मीकि के राम, कौशल्या तथा शूर्पणखा विमल- देशाटन करते हैं । विमलसूरि अनेक गौण कथाओं सूरि में आकर पद्म, अपराजिता तथा चन्द्रनखा को जन्म देते हैं यथा वज्रकर्ण, कपिल, अतिवीर्य, बन जाती हैं। वाल्मीकि नहीं अपितु विमलसूरि वनमाला, रामगिरि आदि। लक्ष्मण कोटिशिला उठा सीता स्वयंयर रचते हैं। विद्याधर राजानों ने वानरों में शक्ति का संचार करते हैं । राम-सुग्रीव लक्ष्मण को अट्ठारह कन्याओं से विवाहित किया। तथा बालि-सुग्रीव के प्रसंग में साहसगति विद्याधर जैन रामकथानों में राम की आठ हजार पत्नियों की कल्पना विमलसूरि का मौलिक सृजन है । तथा लक्ष्मण की सौलह हजार रानियों का विवरण मिलता है।
अंत में सीता सर्वगुप्त नामक मुनि से दीक्षा
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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