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__ प्रायः ऐसा समझा जाता है कि मुसलमान शासक मूर्तियों के और वह भी दिगम्बर जैन मूर्तियों तथा दिगम्बर साधुओं के विशेषकर कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हजारों जैन मंदिरों और मूर्तियों का विध्वंस किया था, यह बात इतिहास से सिद्ध भी है किन्तु इसका दूसरा पक्ष भी है जो अब तक प्रायः अप्रचारित रहा है । प्रस्तुत रचना मुस्लिम शासकों द्वारा जैनों, उनके धर्म तथा प्रायतनों के प्रति बरती गई सहानुभूतियों और उन पर जैन धर्म के प्रभाव का ऐतिहासिक विवेचन प्रस्तुत करती है। धार्मिक सहिष्णुता के प्रचार प्रसार के लिए, जिसकी कि वर्तमानकाल में अतीव आवश्यकता है, ऐसी रचनाओं का महत्व स्वयंसिद्ध है।
-पोल्याका
मुस्लिम राज्य में जैन धर्म
. श्री दिगम्बरदास जैन, एडवोकेट,
सहारनपुर
The Muslim Emperors, who are known for their cruel behaviour, were also influenced by the flowless nolle lives of Jaina Acharyas, Jain Saints and Jain teachings. Jain Acharyas by theii character, attainments and scholarship commanded respect of even Mohammac'en sovereigns like Allaudin and Aurangzeb.
--Prof. Ramaswami Ayanger; Studies in South Indian Jainism, Vol. II, Page 132.
1. गौरी वंश (1175-1206 ई०) के 2. गुलाम बंण (1206-1290 ई०) के मोहम्मद गौरी के राज्य-काल में नग्न जैन साधु राज्य काल में मूलसंघ सेनगण के प्राचार्य दुर्लभभारी संख्या में बिना किसी रोक-टोक के भरे सेन आदि दिगम्बर जैन साधु विनयपूर्वक विहार बाजारों में विहार करते थे। उनकी नग्नता का करते थे। कुतबुद्दीन (1206-1210 ई०) पर मोहम्मद गौरी पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा था जैनाचार्य जिनप्रभसूरि की मधुर व प्रभावशाली कि उन की बेगम को भी नग्न जैन साधुओं के वाणी का बड़ा प्रभाव था । इतिहासरत्न श्री दर्शनों की अभिलाषा हुई । मोहम्मद गौरी ने नग्न अगरचन्द नाहटा के शब्दों में र्जनाचार्य जिनप्रभदिगम्बर जैनाचार्य को अपनी राज्य सभा में बुला सूरि ने कुतबुदीन को प्रतिबोध दिया । पाण्डु देश के कर उन का बड़ा सम्मान किया ।।
जैन राजा समरसिंह को ससंघ जैन तीर्थों की यात्रा
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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