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राखालदास बनर्जी की अवधारणा है कि रूप, रूप्य या रुपया का समानवाची है । हाथीगुम्फा अभिलेख में इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया गया है कि उससे दूसरा अर्थ निकालना सम्भव नहीं हैं । अतः यह कहना कि यहां 'रूप' का तात्पर्य 'अभिनय' है, सर्वथा अनुपयुक्त होगा। जोगेश्वरी गुहालेख में 'लुगदर वे' शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ 'मुद्रा अधिकारी' है । 55 महावग्ग 56 में 'रूप' का अर्थ और स्पष्ट कर दिया गया है । बुद्धघोष कहता है कि जो व्यक्ति रूपशास्त्र का अध्ययन करता है उसे बहुत से कार्षापणों को बार-बार पलटना पड़ता है । अर्थशास्त्र में उल्लिखित 'रूपदर्शक' का अर्थ भी मुद्राओं की परीक्षा करने वाला अधिकारी है । अतः प्रतीत होता है कि 'रूप' का प्रयोग मुद्राशास्त्र के लिये किया गया है ।
गरणना
'गरणना' शब्द का उल्लेख अशोक के तीसरे शिलालेख और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है | राखालदास बनर्जी "" उसका अर्थ 'लेखाकर्म ' करते हैं। डा० जायसवाल 1 का अभिमत है कि गणना का अर्थ शासकीय लेखा-जोखा है । यह मत समीचीन प्रतीत होता है ।
विधि
डा० बरु ? का कथन है कि विधि से तात्पर्य 'नियम' से है जैसे लेखविधि ( शासन लिखने के नियम, रूपविधि ( मुद्रा सम्बन्धी नियम ) आदि । विधि को एक स्वतन्त्र शब्द मानते हुए डा० जायसवाल 63 इसका अर्थ धर्मशास्त्र या धर्म संबंधी नियम करते हैं । डा० बरुप्रा 04 उपर्युक्त अर्थ को अनुपयुक्त बताते हुए कहते हैं कि विधि का प्रयोग अर्थशास्त्र में क्रिया - विधि के रूप में हुआ है जिसका तात्पर्य है न्याय करने के नियम । लेकिन व्यवहार का भी यही अर्थ है । फिर भी इन दोनों शब्दों में
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कुछ अन्तर है । विधि का प्रयोग मानव चरित्र और कर्त्तव्यों के स्वीकृत नियमों के लिये होता है जब कि व्यवहार का प्रचलित परम्पराओं के लिये । डा. बरु का मत है कि खारवेल के अभिलेख में प्रयुक्त विधि नियम, चरित्र, संस्था या धर्मशास्त्र का पर्यायवाची है ।
व्यवहार
हाथीगुम्फा अभिलेख का 'व्यवहार' अशोक का 'वियोहाल' प्रतीत होता है । 65 डा० बरुआ 6 का मत है कि हम डा० देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर द्वारा की गयी वियोहाल - समता की व्यवहार-समता व्याख्या से पूर्वरूपेण सहमत है, किन्तु हम डा० भण्डारकर और बुलर के इस मत से कि 'वियोहाल' अभिहाल (पाली अभिहार) का पर्यायवाची है, सहमत नहीं हैं । तो भी, 'अभिहाले वा दण्डे वा' की बुलर द्वारा की गयी 'पारितोषिक और दण्ड देने' की व्याख्या उपयुक्त प्रतीत होती है ।
सव - विजा
अभिलेख में खारवेल को 'सब विद्याथों से परिशुद्ध' (सव - विजावदातेन ) कहा गया है । यहां सव - विजा के अन्तर्गत कौन-कौन सी विद्यायें या विषय सम्मिलित थे, यह प्रश्न विवादास्पद है । प्राचीन समय में राजकुमारों को प्राप्त पुरुषों के चरित्रों को ध्यान में रखकर मनोवृत्तियों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक था। लेकिन खारवेल अपने अभिलेख में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं करता । मिलिन्दपञह में राजकुमारों की शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ निर्देश मिलते हैं । उनके लिए लेखनकला, गणना, हथियारों का चलाना, सैन्यसंचालन, नीतिशास्त्र, श्रुति, स्मृति, युद्ध और युद्धकला में निपुणता प्राप्त करना आवश्यक था । उपर्युक्त ग्रन्थ में बताया गया है कि मिलिन्द (हिन्दयूनानी शासक मीनेण्डर ) उन्नीस विद्याओं का ज्ञाता
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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