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विद्यानों को शिक्षा में, दिन का दूसरा भाग इतिहास (4) लिंग, वचन, काल और कारक का अर्थात् पुराण, इतिवृत, आख्यायिका, उदाहरण विपरीत प्रयोग करना अपशब्द दोष है। (मीमांसा), धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र सुनने में और (5) लेख विराम आदि चिह्नों की, अर्थशेष समय नवीन ज्ञान के अर्जन और अधीन ज्ञान क्रम के अनुसार योजना न करना संप्लव दोष है। के चिन्तन-मनन में व्यतीत करे ।।1
पत्रलेख के छह गुण-अर्थक्रम, सम्बन्ध, लेख
परिपूर्णता, माधुर्य, औदार्य और स्पष्टता हैं-53
(1) प्रधान अर्थ और अप्रधान अर्थ को ___ खारवेल की शिक्षा के सम्बन्ध में प्रयुक्त लेख,
पूर्वापर यथानुक्रम में रखना ही अर्थक्रम कहलाता रूप और गणना असाधारण महत्व रखते हैं । अतः 'लेख' शब्द का प्रयोग मात्र अक्षर ज्ञान या लिपि
(2) लेख की समाप्ति पर्यन्त अगला अर्थ, ज्ञान के लिये नहीं हुआ । अर्थशास्त्र के अनुसार
प्रस्तुत अर्थ का बाधक न होने पर अर्थ सम्बन्ध किसी राजकुमार को अक्षरों का ज्ञान तीन से पांच
कहलाता है। वर्ष की आयु में करा दिया जाता था। अभिलेख में कहा गया है कि खारवेल ने जीवन के प्रथम
(3) अर्थपद तथा अक्षरों का न्यूनाधिक्य न पन्द्रह वर्ष बालकोचित क्रीड़ानों में और पन्द्रह से
होना, हेतु उदाहरण तथा दृष्टान्त सहित अर्थ का चौबीस वर्ष की आयु का समय युवराज के रूप में
निरीक्षण और प्रभावहीन शब्दों का प्रयोग न करना व्यतीत किया। अतः यह तर्कसंगत नहीं प्रतीत परिपूर्णता कहलाता है। होता कि खारवेल ने पन्द्रह वर्ष की आयु पूरी कर (4) सरल, सुबोध शब्दों का प्रयोग करना
खा होगा। अभिलेख से प्रमा- माधुर्य है। रिणत होता है कि 'लेख-विशारद' (लेखन कला में (5) शिष्ट शब्दों का प्रयोग करना औदार्य निपुण) होने के बाद ही उसने युवराज पद का कहलाता है। दायित्व सम्भाला था । कौटिल्य इस सन्दर्भ में (6) प्रचलित शब्दों का प्रयोग करना ही महत्वपूर्ण जानकारी देता है । वह कहता है कि स्पष्टता है। पत्र लेख के पांच दोष-अकान्ति, व्याघात, पुनरुक्त,
प्रस्तुत अभिलेख में खारवेल के लिये प्रयुक्त अपशब्द, संप्लव बताये गये हैं।
'लेख विशारद' विशेषण का अर्थ इस व्याख्या से (1) स्याही पड़े कागज पर लिखना,मलिन बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है । युवराज पद ग्रहण कागज पर लिखना, भद्दे अक्षर लिखना, छोटे बड़े करते समय तक वह राजकीय शासन लिखने में अक्षर लिखना और फीकी स्याही से लिखना अत्यधिक निपुण हो गया था। इसी कारण उसके कान्ति नामक दोष है।
लिये प्रयुक्त यह विशेषण सर्वथा उपयुक्त प्रतीत
होता है। (2) नवीन लेख से पिछले लेख का विरोध हो जाना या नवीन लेव का पिछले लेख से बाधित रूप हो जाना व्याघात दोष है।
लेख के समान 'रूप' शब्द का व्यवहार भी (3) पूर्वोक्त कथन को दुहरा देना पुनरुक्त विस्तृत अर्थ में हुप्रा है। इसके अन्तर्गत मुद्रा से दोष है।
सम्बन्धित सभी प्रकार की समस्यायें सम्मिलित हैं । महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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