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है, वह सम्राट (चक्रवर्ती) कहा जाता है।6 का प्रेमी' कृष्ण के स्थान पर विष्णु को मानते हैं । राजेश्वर पुनः कहता है कि 'कुमारी द्वीप से विन्दुसर डा० बरुग्रा45 का कथन है कि कुमार खारवेल इतना तक एक सहस्र योजन का भाग चक्रवर्ती क्षेत्र सुन्दर था मानों विष्णु ने ही मानव रूप में अवतार कहा जाता है । इस समूचे क्षेत्र पर विजय लिया हो। अमरकोश16 में कड़ार का अर्थ 'भूरे रंग करने वाला राजा चक्रवर्ती कहा जाता है ।'37 वाला' किया गया है । यही अर्थ अधिक तर्कसंगत इस प्रकार हम देखते हैं कि एक साम्राज्य- प्रतीत होता है। वादी शासक का प्रभाव क्षेत्र पौराणिक38 भारतवर्ष होता था । मानियर विलियम्स चक्रवर्ती शिक्षा शब्द का अर्थ करते हुए कहते हैं-'वह शासक जिसके रथ के पहिये (चक्र बिना अवरोध के सर्वत्र अच्छे शासक का शिक्षित होना अनिवार्य प्रवर्तित होते हैं' या 'एक चक्र' अर्थात समुद्र से है। उसकी शिक्षा के सम्बन्ध में पहले से ही राजलेकर समुद्र पर्यन्त भूभाग का शासक ।'39 विष्णा- शास्त्र प्रणेताओं ने नियम बना रखे हैं । हाथीगुम्फा पुराण40 में कहा गया है कि 'सभी चक्रवतियों के अभिलेख की द्वितीय पंक्ति में कहा गया है कि हाथों पर (अन्य चिह्नों के साथ भगवान् विष्ण का खारवेल ने पन्द्रह वर्षों तक गौर वर्ण वाले शरीर चिह्न पाया जाता है); और वह ऐसा शासक होता से बाल्यकाल की क्रीडायें की। तत्पश्चात् लेख, रूप है जिसकी शक्ति का सामना देवता भी नहीं कर गणना, व्यवहार और धर्म में निष्णात होकर सब सकते ।' इस प्रकार चक्रवर्ती शब्द का अर्थ है 'सार्व- विद्यानों से परिशुद्ध उन्होंने नौ वर्षों तक युवराज भौम शासक' । यह सार्वभौम प्रभुसत्ता की परि- पद सुशोभित किया ।' कौटिल्य राजकुमारों के चायक उपाधियों में से एक है । उपर्युक्त विवेचन अध्ययन क्रम का वर्णन इस प्रकार करता है । से ज्ञात होता है कि खारवेल एक चक्रवर्ती शासक 'मुण्डन संस्कार के बाद वर्णमाला और अकमाला था। उसके लेख में बताया गया है कि उसने का अभ्यास करे ।'47 मनु कहते हैं कि 'सभी सम्पूर्ण भारतवर्ष के विरुद्ध एक सैनिक अभियान द्विजाति बालकों का चूड़ाकरण संस्कार वेद के किया था। उसके रथ के पहिये अविराम गति से अनुसार पहले या तीसरे वर्ष (या कुलपरम्परानुसार) प्रवर्तित हुए थे और उसे सर्वत्र विजय ही प्राप्त करना चाहिये ।'43 इसका तात्पर्य यह हुआ कि हुई थी।
राजकुमार की शिक्षा तीन वर्ष की आयु पूर्ण कर
लेने पर प्रारम्भ करना चाहिये । वर्णमाला और पंक्ति का अगला पद 'सिरि-कडार-सरीर' गणित की यह शिक्षा उपनयन संस्कार के पूर्व तक है। डा० सरकार1 इसका संस्कृत पाठ 'श्रीमत् चलती थी। ग्यारहवें वर्ष में19 उपनयन संस्कार पिंगलदेहभाजा' (श्वेत-पीतवर्ण शरीर वाला) करते सम्पन्न होने पर उसे सदाचारी विद्वान् प्राचार्यों से हैं। चाइल्डर्स12 कलार या कड़ार का अर्थ 'पीले त्रयी (तीन वेद) तथा प्रान्वीक्षकी, विभागीय अध्यक्षों बादामी रंग का' बताते हैं । स्टेनकोनो43 का मत है से वार्ता और वक्ता-प्रयोक्ता विशेषज्ञों (संधि, कि 'सिरि-कड़ार' और 'सिरि-कटार' एक हैं। विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव आदि के प्राचार्य) शब्दमाला के अनुसार इसका तात्पर्य नागर या से दण्डनीति की शिक्षा ग्रहण करना चाहिये ।50 कामी से है । अतः 'सिरि-कड़ार' का अर्थ 'श्री का सोलह वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर समावर्तन प्रेमी' या भगवान् कृष्ण है । डा० जायसवाल14 और विवाह संस्कार होना चाहिये । वह दिन का उपर्युक्त मत को स्वीकार तो करते हैं किन्तु वे 'श्री पहला भाग हाथी, घोड़ा, रथ, अस्त्र-शस्त्र प्रादि
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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