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था । ये विद्यायें---श्रुति, लौकिक नियम (सम्मुति), परम्परा रही है कि प्रतिष्ठित राजवंशोंके उत्तरासांख्य, योग, नीति, वैशेषिक, दर्शन, गणित, संगीत, धिकारियों को शिक्षा-दीक्षा सम्पन्न बनाने के लिए चिकित्सा, चार वेद, पुराण-इतिहास, ज्योतिष, सारी व्यवस्थायें महलों में ही उपलब्ध करायी जाती इन्द्रजाल, जादू, तर्कशास्त्र, युद्धकला और काव्य- थीं। प्रत्येक विषय के निष्णात विद्वान इस कार्य के शास्त्र हैं 167 जूनागढ़ अभिलेख68 में रुद्रदामा को लिये नियोजित किये जाते थे। राजवंशों की मर्या. शब्द, अर्थ, गन्धर्व और न्याय शास्त्रों में प्रवीण दारों की दृष्टि से और कुल-दीपक शिक्षार्थियों की बताया गया है । हाथीगुम्फा अभिलेख में इस तथ्य सुरक्षा को दृष्टि से यह व्यवस्था अधिक सुविधाका उद्घाटन नहीं किया गया कि खारवेल ने 'सर्व- जनक भी थी। विद्या' कहां पढ़ी। प्रतीत होता है कि वह अध्ययन खण्डगिरि के इस अभिलेख का थोड़ा सा के लिए कलिंग से बाहर नहीं गया । सम्भवतः प्रारम्भिक भाग ही हम इस लेख में ला पाये हैं । महलों में ही उसके लिए योग्य शिक्षक या शिक्षकों शेष अंश पर अगले लेखों में विचार किया की व्यवस्था की गयी थी। यह एक प्रचलित जायेगा।
1. से. इ., खण्ड 1 पृ. 214, पं. 1. 2. लूडर्स सूची, कं. 1347. 3. प्रो. ग्रा. ई. पृ. 40. 4. कलिंगांगगजाः श्रेष्ठाः प्राच्याश्चेति करूषजाः 2.2.15. 5. फासबाल, कं. 276. 6. वही, क्र. 547. 7. प्रो. बा. ई., पृ. 39. 8. ज. बि. उ. रि सो., खण्ड 4, पृ. 402. १ से. इ., खण्ड 1, पृ. 211. 10. 2.14.13 11. ए. ई.यू., पृ. 211 12 हेमचन्द्र, सूत्रवृत्ति, 2.2.3; दे. तिलकमजरी. 13. ज. वि. उ रि. सो. खंड 3, पृ. 483-84. 14. डा. अग्रवाल, कौशाम्बी और बान्धवगढ़ के मघ शासक', पुराकल्प, जून 1975,
पृ. 42-47. 15. प्रो. बा. इ., पृ. 266. 16. ई.हि. कां., (वाल्टेयर अधिवेशन) 1953, पृ......... 17. ज. बि. उ. रि. सो., खण्ड 3, पृ. 434. 18. हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा, खण्ड 1, पृ. 72. 19. से. इ., खण्ड 1, पृ. 219, टि. 5. 20. वही, पृ. 214, पं. 1. 21. 7.5. 37-39.
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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