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भारतीय इतिहास में खारवेल के हाथी गुफा वाले शिलालेख का बहुत बड़ा महत्व है । विद्वानों को इस लेख के पढ़ने में सौ वर्ष से भी अधिक का समय लगा । ऐसे महत्वपूर्ण लेख को संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद लेखक द्वय ने बड़े परिश्रम से तैयार किया जो स्मारिका के सन् 1976 के अंक में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् सन् 1977 को स्मारिका में उन्होंने कई तर्कों के आधार से खारवेल की राज्यारोहण तिथि ईसा पूर्व प्रथम शती का अन्तिम चरण निश्चित की । उसी क्रम में विद्वान् लेखकों का यह चौथा निबन्ध है जिसमें उक्त शिलालेख के आधार पर खारवेल के प्रारम्भिक जीवन की कुछ घटनाओं का वर्णन किया गया है। स्मारिका के इस अंक में भी यह प्रकरण समाप्त नहीं हुआ है । ऐसे श्रमसाध्य कार्य के लिए लेखक द्वय अभिनन्दन के पात्र हैं।
-पोल्याका
खारवेल का प्रारम्भिक जीवन
नीरज जैन एम० ए०, ) डा० कन्हैयालाल अग्रवाल, सतना
दो हजार वर्ष प्राचीन हाथीगुम्फा अभिलेख के प्रतिवर्ष की घटनाओं का उल्लेख है, जिसके खण्डगिरि-उदयगिरि पर्वत के दक्षिण की ओर आधार पर हम स्मारिका के 1975, 76 और 77 लाल-बलुवे पत्थर की एक चौड़ी प्राकृतिक गुहा में के अंकों में तीन लेख प्रकाशित करा चुके हैं । लेख उत्कीर्ण है । इसमें सत्रह पंक्तियां हैं । प्रस्तुत लेख शृंखला की चौथी किश्त के रूप में प्रस्तुत हैपहली बार स्टर्लिंग द्वारा 1820 ई० में प्रकाश में 'खारवेल का प्रारम्भिक जीवन'। पाया। तब से 1927 ई० तक इसके संशोधित पाठ समय-समय पर प्रकाशित होते रहे । इस प्रकार महामेघवाहन विवेच्य अभिलेख पढ़ने और समझने में लगभग एक हाथीगुम्फा अभिलेख में खारवेल को शती (1820 ई० से 1917 ई०) का दीर्घकाल 'महामेघवाहनेन' कहा गया है । एक अन्य अभिलेख लगा । इस अभिलेख में कलिंग चक्रवर्ती जैन सम्राट में उसके पुत्र और उत्तराधिकारी राजा वक्रदेव को खारवेल के व्यक्तित्व और प्रशासनकाल की घटनाओं 'महामेघवाहनस्य' कहा गया है। इन सन्दर्भो से का विस्तृत परिचय दिया गया है । इसकी एक स्पष्ट होता है कि खारवेल 'महामेघवाहन' उपाधि प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें खारवेल के शासन धारण करता था और उसके उत्तराधिकारी भी
महाबीर जयन्ती स्मारिका 78
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