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सत्य के धरातल पर
दो क्षणिकाएं
श्री शर्मन लाल "सरस"
सकरार (भांसी)
एक जमाना था, जब गाय सिंह एक घाट पानी पीते थे, अब - गाय सिंह तो दूर, एक प्रांत के दो भाई एक साथ, पानी नहीं पीते हैं, वे - द्वेष से भरे, प्यार से रीते हैं अब - दुर्बल हो या बलवान, निर्धन हो या धनवान, बुद्धू हो या विद्वान,
आदमी में इतनी कटुता होने लगी है, कि - पशुता तक रोने लगी है, आज हाँ पाजएक चादर में दो कुत्ते एक साथ सो सकते हैं, पर - दो- इन्सान एक साथ नहीं सो पायेंगे, वे चीखेंगे चिल्लायेंगे और दाव लगते ही काट खायेंगे।
(२) हमारी प्राचरणहीनता को, महावीर का नाम नहीं पाट सकता है, सोचिए तो सही कहीं पंगु पहाड लांघ सकता है, हम भले ही विधान करें, विमान निकालें, मंदिरों के नगर गढ़ें, प्रतिमाओं के प्रम्बार लगालें, सुन्दर बोलें अच्छा समझायें झांकी जलूसों से जमाने पर छाजाए पर - जब तक हमारे जीवन में, भाचरण के निशान नहीं हैं, देव होने की तो बात दूर, हम इन्सान नहीं हैं।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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