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इस उपाधि का प्रयोग गौरवपूर्वक करते थे। करते हैं और एक जातक कथा के आधार पर व्युत्पत्ति सम्बन्धी नियम से 'महामेघवाहन' का अर्थ इसका अर्थ 'स्वामी' बताते हैं । डा० सुकुमार सेन16 है : 'वह व्यक्ति जिसका वाहन महामेघ अर्थात् इसे वैदिक 'इर' से निष्पन्न परवर्ती वैदिककाल के बादल के समान महान् राजहस्ति हो ।'3 मेघों के ऐर' का पर्याय बताते हैं और इसका अर्थ 'जल, अतिरिक्त इस शब्द का अर्थ 'हाथी' भी होता है। जलपान, भोजन, आराम और मनोरंजन' करते हैं। अर्थशास्त्र से विदित होता है कि कलिंगदेश में इस अर्थ के आधार पर डा० सेन इसे वैदिक 'इर्य' उत्तम कोटि के हाथी होते थे। कुरुधम्म और का पर्याय स्वीकार करते हैं जिसका तात्पर्य ऐसे वेस्सन्तर जातक कथानों से प्रकट होता है कि स्वामी से है जो फुर्तीला, शक्तिवान और प्रबल हो । राजहस्ति से प्रजा की धार्मिक भावनायें सम्बद्ध थी। डा० काशीप्रसाद जायसवाल का मत है कि राज
कीय उपाधि का पहला शब्द 'ऐर' है जिसका प्रयोग चूकि इन्द्र का वाहन हाथी है, अतः महा
एक सातवाहन अभिलेख में भी हुआ है। सेनार ने मेघवाहन इन्द्र का पर्याय हो सकता है। वह मेघों
इसका अनुवाद 'आर्य' किया है । डा० जायसवाल का देवता कहा जाता है। इसलिये जलवृष्टि का
का कथन है कि खारवेल की अधिकांश प्रजा द्रविण भी उससे सम्बन्ध है । वह देवों का देव है, अतः
या आर्य द्रविणों की थी, अतः यहां खारवेल द्वारा महेन्द्र कहा जाता है । यहाँ भी महामेघवाहन विरुद ऐर' शब्द का प्रयोग अपनी रक्त श्रेष्ठता सिद्ध से कुछ इसी तरह का अर्थ ध्वनित होता है। डा० करने के लिये किया गया है। चूंकि खारवेल एक बरुग्रा' का मत है कि अभिलेख की सोलहवीं पंक्ति प्रादर्श और लोकप्रिय शासक था, अतः डा० में 'इन्द्रराज' शब्द के प्रयोग से स्पष्ट मालूम होता है
जायसवाल का उक्त मत सन्देह से परे नहीं है। कि खारवेल की तुलना इन्द्र से की गयी है । तो भी,
डा० राखालदास बनर्जी18 का मत है कि 'र' 'ऐड' डा० बरुपा का 'इन्द्रराज' शब्द डा० जायसवाल
अथवा 'ऐल' का पर्याय है जिसका अर्थ है 'ईला' या और डा० सरकार द्वारा भिक्षुराज पढ़ा गया है।
'इला की सन्तान' । डा० दिनेशचन्द्र सरकार भी अतः डा० बरुग्रा का पाठ स्वीकार नहीं किया जा ,
उपर्युक्त मत को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि सकता ।
'ऐल' चन्द्रवंशी थे । यही मत उपयुक्त प्रतीत
होता है। प्राचीन भारत में मेघवाहन शब्द का प्रयोग व्यक्तिगत और राजवंशीय नामों के लिये हा है चेदिवंश जिसकी पुष्टि महाभारत, राजतरंगिणी1 और
खारवेल स्वयं को चेदिराज के वंश 0 का जैन साहित्य से होती है । डा० जायसवाल13 का
बताता है । इतना ही नहीं अपने अभिलेख की मत है कि पुराणों में वरिणत मेघ शब्द महामेघवाहन
सत्रहवीं पंक्ति में अपने कथन को स्पष्ट करते हुए का संक्षिप्त रूप है । मेघ अथवा मघl4 एक ही हैं
: स्वयं को चेदिनरेश वसु का वंशज कहता है । जिन्होंने तीसरी शती ई० तक दक्षिण कोसल में
ऋग्वेद-1 में चेदि देश के निवासियों के साथ वहां शासन किया।
के राजा कसू चैद्य का उल्लेख मिलता है। प्रो०
रैप्सन ने इस कसु चैद्य को महाभारत में उल्लिखित इस विरुद् का अर्थ स्पष्ट नहीं है । डा. वसु बताया है। यह वसु चेदिदेश (प्राधुनिक बरुपा। इसे 'वेर' पढ़ते हैं और वीर का पर्याय बुन्देलखण्ड) का शासक था। उसकी राजधानी स्वीकार करते हैं । वे इसके 'ऐर' पाठ को भी मान्य शुक्तिमतीपुरी थी ।23 चेतिय जातक के अनुसार
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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