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वीर ने प्रसत्य बोलने को पाप मानकर सदा सत्य तं अप्पणा न गिव्हंति, बोलने का ही आह्वान किया यथा
नौ वि गिण्हावए पर।
मन्नं वा गिण्हमारणं वि, मुसाबानो य लोगम्मि,
___ नाणुजाणंति संजया ॥ सत्वसाहूहि गरिहियो । अविस्सासो य भूयारणं,
अर्थात् कोई भी वस्तु चाहे सजीव हो अथवा तम्हा मोसं विवज्जए ।। निर्जीव, कम हो या ज्यादा, यहां तक कि वह दांत
कुतरने तक की सलाई के समान ही छोटी क्यों न इस जगत में सभी साधु पुरुषों ने असत्यवादन की घोर निंदा की है । अत: असत्य वचन का परि
- हो, उसे बिना उसके स्वामी से पूछे नहीं उठाना स्याग करना चाहिए। यही नहीं वरन् सत्य व
चाहिए। यही नहीं वरन दूसरों से भी न उठवाये
और न उठाने वाले का अनुमोदन करें। यथाः मधुर वचन से तो सोने में सुगंध ही पैदा हो जाती है। इसलिए कड़वा वचन न बोलकर सत्य ब मधुर
तहाभिभूयस्स उदत्तहारिणो, वचन ही बोले यथा
रुवे अतितस्स परिग्गहे य । महत्तदुक्खा उद्ववंति कंटया,
मायामुसं वड्ढइ लाभदोसा, अग्रोमथा ते वि तपो सुउद्धरा ।
तत्था वि दुक्खा न विमुच्चई से ।। वाया दुरूत्तागि दुरूद्धराणि,
रूप के संग्रह से असंतुष्ट बना हुआ जीव तृष्णा वेराणूबन्धीणि महत्भयाणि ।।
के वशीभूत होकर अदत्त का ग्रहण करता है और अर्थात् कांटा व कील चुभ जाने पर कुछ देर इस तरह प्राप्त बस्तु के रक्षणार्थ लोभ-दोष में सक] ही दुख होता है पर कठोर वाणी की चोट फंसकर कपट क्रिया द्वारा असत्य बोलता है। इन चिरकाल तक का ट पहुंचाते हुए वैर को उपजा कर कारणो से वह दुःख से मुक्त नहीं हो सकता । अतः विनाश की ओर ले जाती है। प्रतः बागी पर दुख से मुक्त होकर सुख प्राप्त करने के लिए अस्तेय सदैव संयम रखना चाहिए।
वृत्ति को परखना आवश्यक है। विश्वकल्याण की अस्तेय
कामना से इस उपदेश पर ध्यान देना अावश्
यक है। ____ अाज एक दूसरे की संपत्ति व वस्तुओं को हड़पने की प्रवृत्ति कितनी बलवती होती जा रही हैं अपरिग्रह जो किसी से छिपी नहीं है। भगवान महावीर की उपदेशों को हृदयंगम करके इस बुराई को मिटापा ।
प्राज के सर्वोदय सिद्धान्त का महत्व अपरिग्रह जा सकता है तभी समाजवाद साकार हो सकता।
__ की वरीयता में समाविष्ट है शोषरण द्वारा धन संग्रह
___की कड़ी निन्दा की गई है। महावीर ने कहा हैहै । महावीर ने स्पष्ट कहा हैचित्तमंतमचित्तं वा,
जे पापकम्हेहि धरणं मणूसा, अप्पं वा अइ वा बद्ध।
समायघन्ती अमई गहाय । दंतसोहणमित्तं वि,
पहाय ते पासपयहिए नरे, उग्गहंसि प्रजाइया ।।
बेरागुवद्धा गरयं उवेन्ति ।।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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