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महावीर के उपदेशों की
श्री हजारीलाल जैन 'काका' सकरार सत्पथ भटक चुका है मानव भूल गया उद्देश्य को,
महावीर के उपदेशों की पुनः जरूरत देश को, आज क्षमा की जगह क्रोध का हर मन पर अधिकार है, मानवता ठुकराई जाती दानवता से प्यार है, तज कर मान कषाय छोड़ना होगा नकली वेष को, महावीर के उपदेशों की पुन: जरूरत देश को,
सत्य भटकता बाजारों में झूठ पुज रहा है च पोर, संयम के बाने में लिपटे घूम रहे खल कामी चोर, तप से हमें शुद्ध करना है मन के इस आवेश को,
महावीर के उपदेशों की पुन: जरूरत देश को, इच्छाओं का दमन न अब मानव के वश की बात है, सारे जग की मिलै सम्पदा यही फिकर दिन रात है, इसी चक्र में घूम रहा नर चैन नहीं लवलेश को, महावीर के उपदेशों की पुनः जरूरत देश को,
पर वस्तु में रमण करे फिर भी बनता ब्रह्मचारी है, निज स्वरूप को भूला चेतन ऐसा बना अनारी है, 'काका' लोभ मोह को त्यागो रखो न लघु अवशेष को, महावीर के उपदेशों की माज जरूरत देश को,
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महावीर जयन्ती स्मारिका "
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