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________________ प्रिंस प्राफ वेल्स संग्रहालय, बम्बई का जैन कांस्य मूतियों के संग्रह के कारण अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है । इन मूतियों में से कुछ के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न समयों पर कई पत्र पत्रिकाओं में अपने निबन्ध प्रकाशित कराये हैं मगर प्राज तक एक भी ऐसा निबन्ध प्रकाशित नहीं हुआ जो वहां की सम्पूर्ण कास्य मूर्तियों के सम्बन्ध में एक ही स्थान पर जानकारी उपलब्ध करा सके । विद्वान लेखक ने अपने इस निबन्ध द्वारा एक बहुत बड़े प्रभाव की पूर्ति की है। प्राशा है इस क्षेत्र के शोधार्थी छात्रों एवं अनुसंधिस्सुत्रों के लिए यह निबन्ध बडा उपयोगी सिद्ध होगा। 2ACT STO प्र. सम्पादक प्रिन्स आफ वेल्स संग्रहालय, बम्बई में कांस्य मतियां * डा. व्रजेन्द्रनाथ शर्मा दिल्ली प्रिन्स पाफ वेल्स संग्रहालय, बम्बई में जैन आदिनाथ एक पद्म पर जो त्रिरथ पीठिका पर कांस्य प्रतिमानों का बड़ा महत्वपूर्ण संग्रह है। स्थित है, कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं । इनके घुघराले इन प्रतिमामों में केवल दो को छोड़कर जो चोपडा केश दोनों ओर कन्धों पर लटक रहे हैं । इनके वक्ष तथा श्रवण बेलगोला से प्राप्त हुई थीं अन्य मूर्तियां पर सोने का श्रीवत्स चिन्ह अंकित है तथा नीचे पश्चिमी भारत में बनी प्रतीत होती हैं। इन मूर्तियों के अधो भाग में धोती पहिने है जिसकी गांठ सामने पर सुप्रसिद्ध विद्वान् डा० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह लगी है। इनके शीश के पीछे एक सुन्दर प्रभा बनी तथा डा० मोतीचन्द व श्री सदाशिव गोरक्श्कर है तथा दोनों ओर एक-एक चंवरधारी सेवक खड़ा प्रादि ने विभिन्न अंग्रेजी की पत्रिकाओं में निबन्ध है। इनके अतिरिक्त दोनों प्रोरही तीन-तीन तीर्थकर प्रकाशित किये हैं। प्रस्तुत लेख में हम समस्त जैन ध्यान मुद्रा में हैं । प्रादिनाथ के शीश के पीछे बनी मूर्तियों को एक ही स्थान पर प्रकाशित कर रहे हैं प्रभा के दोनों मोर चार-चार तीर्थकर विराजमान जिससे जैन मूर्तिकला में रुचि रखने वाले विद्वान हैं। इनके ऊपर एक पंक्ति में छः तथा उनके ऊपर एवं विद्यार्थियों को उनकी जानकारी प्राप्त हो अन्य पंक्ति में तीन अन्य तीर्थकरों को ध्यानस्थ सके। प्रतिमायें हैं। सबसे ऊपर की पंक्ति के मध्य में इस संग्रहालय की सबसे प्राचीन जैन कास्यमूर्ति पांच फणों की छाया में तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ का चौवीसी पट्ट है (नं० की मूर्ति है । मूल प्रतिमा के बाह्य भाग पर दोनों 42) जो चोपड़ा, जिला खानदेश में कई वर्ष पूर्व प्राप्त प्रोर नीचे से ऊपर तक क्रमशः गज-शार्दूल, वीणाहना था । दो फीट ऊंची एवं पाठवीं शती ई० में वादक, मृदंग वादक, ढपली वादक तथा हाथ जोड़े निर्मित इस अत्यन्त कलात्मक मूर्ति के मध्य में दिव्य उपासिकायें तथा मालाधारी गन्धर्व उड़ते महावीर जयन्ती स्मारिका 77 2-59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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