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असम्पृक्त लगाव
संगीत लहर
डॉ० नरेन्द्र भानावत
श्री उदयचन्द्र'प्रभाकर' शास्त्री, इन्दौर
मतवाद,
प्राम्र बल्लरियां कोयल के
स्वार्थ,
और कट्टरता से बंधी धुटन भरी तंग मुट्ठियों को जरूरत हैमहावीर के अनन्तधर्मा सापेक्ष चिन्तन के भ्रममुक्त खुलाव की।
ini sabiani nadilanie
दिशा हीन, बेमानी, विक्षिप्त यात्रा को तेज भागती पेंडूलमी रफ्तार को जरूरत हैमहावीर के स्थितप्रज्ञ अन्तर्मन के विवेकदीप्त पड़ाव की।
सरगम से गूंज उठी माभास हुआ पत्तों को ये कौन पाण्डुर वस्त्रों के बीच फिर भी खामोशी दूर क्षितिज के कोने तक चंचल मंद पबन फिर भी ललचाया जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को धरती पर विखराया ममता ने समताभाव घराकर छोटी सी कच्छी पहनाई धर्म दीप की ज्ञानदृष्टि अपनाई ये मेरे नहीं आज मैं जिनको कहता हूं पर वो देखो सुख को जन जन में अब भी वांट रहा पता नहीं कैसी पहरी झुरमुट से यों ताक रहा संगीत लहर ज्ञानामृत की सरिता में यों घोल रहा तब क्या मैं महावीर को जान सका?
रक्तरंजित, जहरीली पंधेरी, मनन्त लालसानों से प्रस्त, संतप्त दुर्लभ जीवन सांसों को जरूरत हैमहावीर के तप संयममय मसम्पृक्त लगाव की।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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