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15. राहुल सांकृत्यायन, तिब्बत में बौद्ध धर्म । 16. सुजुकी, ऐसेज इन जैन बुद्धिज्म, पृ० 222-331 17. द्रष्टव्य', लेखक का निबन्ध- 'भगवान् ऋषभदेव एवं शिव के व्यक्तित्व का विकास' । 18. हस्तीमल जी महाराज, जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग 1 19. देवस्थली, जी० वी०, 'प्राकृतिज्म इन द ऋग्वेद' सेमिनार प्रकाशन. पूना, 1969 20. देवेन्द्र मुनि, भगवान् पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन 21. आवश्यकचूणि पूर्वभाग, पृ० 246-47 22. भासाइ दोसे य गुणेण जाणिया।
तीसे य दुढें परिवज्जिए सया ।। --दशवकालिक, 7156 23. अप्पत्तियं जेण सिया आसु कुप्पेज्ज वा परो।
सव्वसो तं न भासेज्जा भासं अहियगामिरिणं ॥ --दश० 8147 24. वएज्ज बुद्ध हियमाणुलोमियं । 25. वई-विक्खिलियं नच्चा न तं उवहसे मुणी। --महावीर के हजार उपदेश 26. शास्त्री, नेपिचन्द्र-भगवान् महावीर की प्राचार्य परम्परा, भाग 1 27. गोमट्टसार जीवकाण्ड, 2271488115 28. अट्ठारस महाभासा वि खुल्लयभासा विसत्तसतसंखा ।
प्रक्खर रणक्खरप्पय सण्णी जीवाण सयलभासाओ | --तिलोयपण्णत्ति, 1161 29. समन्तभद्र, स्वयम्भूस्तोत्र, 97 30. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्मं प्राक्खइ । ---समवायांगसुत्त , 98 31. जैन, देवेन्द्र कुमार, अपभ्रंश भाषा और साहित्य । 32. नाहटा, अगरचन्द, राजस्थानी साहित्य की गौरवपूर्ण परम्परा । 33. जैन, प्रेम सुमन, राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रश के प्रयोग । 34. मशी. कन्हैयालाल माणिकलाल गजराती साहित्य, भाग 5 35. डांडेकर, मार० एन०-प्रोसिडिंग आफ द सेमिनार इन प्राकृत स्टडीज, 1969 36. शास्त्री, कैलाशचन्द्र, दक्षिण भारत में जैनधर्म । 37. शास्त्री, नेमिचन्द, हिन्दी का जैन साहित्य । 38. जैन, जगदीशचन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० 693-702 । 39. जैन, प्रेम सुमन, प्राकृत-अपभ्रंश तथा अन्य भारतीय भाषाएं । 40. कत्रे एस० एम०, प्राकृत लेंग्वेजेज एण्ड देयर कन्ट्रीब्युशन्स टू इण्डियन कल्चर ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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