________________
मरहट्ट
चारों
प्राकित हिन्दी
प्राकृत हिन्दी इस तरह स्पष्ट है कि महावीर की परम्परा प्रक्खाड अखाड़ा
रहट ने प्रारम्भ से ही जनभाषा को महत्व दिया है तथा उक्खल प्रोखली
उल्लुट उल्टा
प्रत्येक युग और स्थान की जनभाषा को साहित्य कोइला कोयला खल्ल
खाल चाउला
तथा प्राध्यात्मिक चेतना से विकसित किया चावल चोक्ख चोखा छइल्लो छैला
झाड़
है 140 भारतीय भाषाओं के भाषावैज्ञानिक, साहिडोरो डोरा
चारा त्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन व अनुसंधान के पत्तल पतला भल्ल भला
लिए यह अनिवार्य हो गया है कि महावीर एवं हिन्दी भाषा में प्राकृत के शब्द ही नहीं, अपितु बुद्ध की परम्परा तथा उसके सम्पूर्ण साहित्य का बहुत-सी क्रियाएं भी ग्रहण की गयी हैं 139
विधिवत् प्रध्ययन किया जाय। पब तक जो यथाः
अध्ययन किया गया है उसका पुनः मूल्यांकन कर प्राकृत हिन्दी प्राक तहिन्दी
समग्र रूप से बौद्ध एवं जैन धर्म की परम्परा के उड़ना कुद्दति कूदना
स्वरूप एवं उसके योगदान को स्पष्ट करने की खोदना चमक्क
चमकना देक्स देखना पिट्ट पीटना
नितान्त आवश्यकता है । तभी हम भारतीय लुक्का लुकना
बैठना आदि। संस्कृति की पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
सन्दर्भ
1. अंगुत्तर निकाय तिक-निपात सुत्त; द्रष्टव्य, मिलिन्दप्रश्न (हिन्दी), पृ. 231 2. मज्झिम निकाय, किन्ति-सुत्त, 31113 3. उपाध्याय, भरतसिंह. पालि साहित्य का इतिहास, पृ० 27 4. मज्झिम निकाय, भरण-विभंग सुत्त, 31419 5. 'संकाय निरुत्तिया बुद्ध-वचनं दूसेन्ति', विनय पिटक, चुल्लवग्ग 6. 'हन्द मयं भन्ते बुद्धवचनं छन्दसो पारोपेमाति', 7. 'मनुजानामि भिक्खवे सकायनिरुत्तिया बुद्धवचनं परियापुरिणतु', 8. सेन, सुकुमार, ए कम्पेरेटिव ग्रामर आफ मिडिल इण्डो-आर्यन लेंग्वेजेज । 9. उपाध्याय, वही, पृ० 681-90 10. 'सम्मासम्बुद्ध न वृत्तप्पकारो मागधको वोहारो'–समन्तपासादिका, बुद्धघोष तथा 'सा मागधी
मूल भासा-सम्बद्धा चापि भासरे'-कच्चान व्याकरण । 11. 'सब्वेसं मूल भासाय मागधाय निरुत्तिया'-चूलवंश, परिच्छेद 37 तथा 'मागधिकाय सब्बसत्तानं
मूलभासाय'-विशुद्धिभग्ग । 12. प्राचार्य बुद्धघोष की अट्ठकथाएं द्रष्टव्य । 13. वापट, बौद्धधर्म के 2500 वर्ष । 14. सोगन, यमकामी, सिस्टम्स आफ बुद्धिस्ट थाट, पृ. 72-79
2-52
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |