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मेहुण
डाबु
रन्न
रान
गुजरात में महावीर की परम्परा का अधिक की समृद्धि में भी अपना योगदान किया है 136 प्रभाव रहा है। गुजराती भाषा का जैन साहित्य महाराष्ट्रो प्राकृत का प्रभाव मराठी भाषा पर भाषा और संस्कृति की दृष्टि से पर्याप्त समृद्ध स्पष्ट है । यथाहै 34 मध्यदेश की शौरसेनी प्राकृत व अपभ्रंश प्राकत मराठी प्राकत मराठी का गुजराती पर अधिक प्रभाव है । शब्द समूहों के प्रणिय प्रणिया उन्दर उन्दीर उदाहरण द्रष्टव्य हैं:
कोल्लुग कोल्हा जल्ल जाल प्राकृत गुजराती प्राकृत गुजराती
तोंड तक्क ताक अंगोहलि घोल प्रोइल्ल पोलक
नेऊरण नेऊन
मेवड़ा उण्डा ऊण्हा छोयर छोकरा
सुण्ह षून वाउल्ल बाहुली डब्ब
कर्णाटक में जैन धर्म का प्रसार वहां की पूर्वी भारत की प्राधुनिक भाषामों में भोजपुरी. संस्कृति के लिए वरदान सिद्ध हुअा है । न केवल मगही, मैथिली, उड़िया, बंगाली और असमिया
वहां धर्म की भावना जागृत हुई अपितु जैनाचार्यो प्रमुख हैं। इन भाषानों के विकासक्षेत्र में प्राकृत
के सहयोग से तामिल एवं कन्नड़ साहित्य की व अपभ्रश का पर्याप्त प्रभाव रहा है। जैनाचार्यों
समृद्धि भी पर्याप्त हुई है। साहित्य के अतिरिक्त की विहारभूमि होने से उन्होंने इन भाषाओं को दक्षिण की इन भाषानों में प्राकृत के तत्व भी भी धर्मप्रचार का माध्यम बनाया है । इन समाहित हुए हैं । कुछ शब्दों के उदाहरण द्रष्टव्य भाषामों में प्राकृत अपभ्रंश के अनेक पोषक तत्व उपलब्ध हैं, जिनका अध्ययन विद्वानो ने किया है। यहां कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं ।
प्राकृत कन्नड प्राकृत
अोलग्ग प्रोलग कन्दल कद (1) प्राकृत भोजपुरी प्राकृत भोजपुरी
चवेड़ चप्पालि देसिय देसिक जीहा जीभ
चक्क चाक
पल्लि किसन किसुन किस्सा
पिसुणिम
पिसुण खिस्सा प्राकृत तमिल
प्राकृत तमिल कड्ढ काढ़इ सिज्झ सीझइ
प्रक्क प्रका कडप्प कलप्पाइ (2) प्राकृत मैथिली प्राकृत मैथिली
कोरि पिल्लम कच्चहरिप्र कचहरी
कद्दम कादों
अाज हम राष्ट्रभाषा के रूप में जिस हिन्दी लोहाल लोहार सिक्खल सिक्करी
भाषा का प्रयोग करते हैं उसका विकास कई टिलक टिकुली पिढिमा पिरहिमा
प्रवस्थानों से गुजर कर हुपा है। हिन्दी भाषा (3) प्राकृत उडिया प्राकृत उड़िया
में जैन प्राचार्यों ने कई रचनाएं लिखी हैं 137 सिग्राल शिपाल हिम हिमा महावीर की परम्परा का हिन्दी भाषा से घनिष्ठ सही सही नाह
सम्बन्ध होने के कारण हिन्दी की शब्द-सम्पत्ति में ठाण ठा थण थन
संस्कृत के अतिरिक्त बहुत से ऐसे शब्द भी हैं जो सवत्ति सावत भत्त भात
मीधे प्राकृत अपभ्रश से उसमें आये हैं । हजारों वेज्ज वेज हत्थ हाथ वर्षों से इन शब्दों की सुरक्षा महावीर की परम्परा
दक्षिण भारत में भी जैन धर्म पर्या'त के साहित्य में होती रही है ।38 उदाहरणार्थ कुछ विकसित हुआ है । जैनाचार्यों ने वहां की भाषामों शब्द द्रष्टव्य है :
कन्नड
पल्ली
कुरर
पिल्लइ
नाह
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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