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एवं परिग्रह की वृत्ति का त्याग कर संयम से रहना भगवान महावीर ने कहा- सभी समान हैं। चाहिए।
समाज में तब तक सुख व अमन चैन नहीं होगा भगवान् महावीर ने कहा है कि जिस प्रकार जब तक यह मिथ्याभिमान रहेगा। अतः सुख को स्वर्ण को तपाकर एवं कसौटी पर रखकर उसकी प्राप्त करने के लिए समन्वयवाद का रास्ता लो। परीक्षा की जाती हैं, उसी प्रकार आप मेरे वचनों
वादों की दुनियां में कर्मवाद अपना एक को सत्यता की कसौटी पर रखकर परखिये फिर विशिष्ट स्थान रखता है। कर्मवाद ही जनधर्म उनको ग्रहण करें । भगवान् महावीर ने कहा है कि एवं जैन संस्कृति की गहरी एवं सुदृढ नींव है जिस धर्म की ग्रन्थों की बातें सच्ची नहीं हैं। परन्तु पर ही यह भव्य प्रासाद खड़ा है। मनुष्य अपने मनुष्य की विवेक बुद्धि ही धर्मग्रहण का प्रमाण प्रति फलों से ही सुख एवं दुख भुगतता है। प्राप है। इस प्रकार महावीर ने ऐसे उपदेशों से अन्ध- TT तो पापक कर्म बन्धन क्षीण होंगे. विश्वासों का नाश किया।
और पाप मोक्ष को प्राप्त करेगें। कर्मों के बन्धनों प्राज का युग युद्धों की कगार पर खड़ा है। से छुटकारा पाने का ही नाम मुक्ति है । भगवान् शीतयुद्ध की हर समय सम्भावना बनी रहती है। महावीर की वाणी, उपदेश ईश्वर के प्रागे गिड़परन्तु विश्व शान्ति के लिए सिर्फ एक ही साधन
गिड़ाने व पहाडों-पर्वतों तीर्थ स्थानों पर भटकने है अहिंसा' । 'पहिंसा' की अमोध शक्ति के सामने
की शिक्षा नहीं देते। जैन साधक अपने बन्धनों को सभी शक्तियां कुठित होती दिखाई देने लगी हैं।
खोलने के लिए स्वयं प्रात्मा के द्वारा कल्याण
करते हैं। प्रतः पाप जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल अाज प्रत्येक मनुष्य कहता है कि 'मेरा सो पापको मिलेगा। भगवान् महावीर ने मोक्ष व सच्चा' परन्तु यह समाज में एक मिथ्याभिमान सच्चे मार्ग के लिए तीन नियम बतलाये-1.
सम्यक दर्शन 2. सम्यक ज्ञान 3. सम्यक चारित्र । भगवान् महावीर ने कहा था कि प्रत्येक वस्त इनके द्वारा कल्याण हो सकता है। में सच्चाई है, उसे समझने की कोशिश करो, और उसे ग्रहण करो।
भगवान महावीर के उपदेश कोटि-कोटि मानवों
के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं । इनके उपभारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् भी वर्ग भेद देशों के श्रवण, मनन व चिन्तन से ज्ञान, प्रेरणा व एवं जाति-पांति का बोलबाला है । भगवान् महावीर पुरुषार्थ का संचार होता है। प्राज के युग को ऐसे ने कहा है कि इस समाज में जाति का सम्बन्ध उपदेशों की अावश्यकता है, एवं जीवन में ढालने कर्म से है, जन्म से नहीं। कोई भी मनुष्य चाहे की भी। किसी भी जाति में जन्म ले,चाहे वह किसी भी देश का हो, वह मेरे धर्म की शीतल छाया में बैठकर
प्राज का पुरुष न जाने कदम-कदम पर कितनी पावन बन सकता है।
हिंसाएं करता है, बुरे कार्य करता है। जरा सी
धन प्राप्ति के लिए किसी की जान लेने में भी न भगवान् महावीर के उपदेशों की एक बड़ी चूकता। भारतीय इतिहास में ऐसे कई उदाहरण विशेषता है-समन्वयवाद । समन्वयवाद का अर्थ मिल जायेंगे जिसमें पुत्र, धन या राजप्राप्ति के है-किसी एक वस्तु के बारे में विभिन्न दृष्टि. लिए पिता अथवा निकट सम्बन्धी की हत्या कर कोणों से विचार करना ।
देता। परन्तु हमें इस प्रकार हिंसा से बचकर
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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