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राजस्थान जैनसभा ने गत वर्ष (सन् 1976) से एक नई प्रवृत्ति प्रारम्भ की है। वह प्रतिवर्ष उच्चमाध्यमिक कक्षा तक के विद्यार्थियों को जैन विषयों पर एक निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन करने लगी है । गतवर्ष प्रथम और द्वितीय प्राये निबन्ध प्रतियोगियों की रचनाएँ हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं । पाठकों से हमारा नम्र निवेदन यह है कि वे इन निबंधों को उस ही स्तर का समझकर पढ़े। स्मारिका में इन लेखों का प्रकाशन उत्साहवर्द्धन हेतु है।
प्र. सम्पादक
प्रथम
जनहित में भगवान महावीर
8 श्री हेमन्तकुमार जैन, जयपुर
जो देवों का देव देवता,
सानों को दूर करने के लिए 'सर्वोदय' का नारा जिसके चरणों में श्रद्धानत । दिया जिसे हम सर्वोदयबाद कहते हैं। ये सभी अन्तर के कण-कण से वन्दन,
प्रयोग अपने अपने समयानुकुल ही हुए और इनमें जनहितकारी उसी बीर को संतत ।। सफलता भी मिली।
__ आज हम भगवान् महावीर के 2574 वे जन्म भारत की पवित्र भूमि आदिकाल से ही
दिवस के उपलक्ष में इस प्रश्न पर विचार कर रहे विभिन्न विचारों की प्रयोगशाला रही है। यहां
हैं कि भगवान् महावीर ने जो सन्देश दिए, वो से महापुरुष सदैव ही इस प्रश्न पर गम्भीरता से
जनता के लिए किस प्रकार लाभकारी हुए ? एवं विचार करते रहे हैं कि समाज को सुख-शांति किस
मानव सभ्यता किस प्रकार दुखों के गर्त से बाहर तरीके से सुलभ हो सके।
निकल कर ऊपर की ओर उठी। समाज कल्याण के लिए राम ने 'नीति' का
भगवान् महावीर ने जनहित के लिए क्या-क्या प्रयोग किया, कृष्ण ने 'रीति' का प्रयोग किया,
कार्य किए वे निम्न हैं : बुद्ध ने 'करुणा' का, तो महावीर ने 'अहिंसा' व 'अनेकान्त' का प्रयोग किया। महात्मा गांधी ने प्राज का मानव मंहगाई से त्रस्त हैं। वास्तव अन्याय के प्रतिकार के लिए 'सत्याग्रह' का प्रयोग में इसका क्या कारण है ? इसका कारण है परिग्रह किया, तो लेनिन ने समाज की सभी प्रकार की अथवा संचय की प्रवृत्ति । भगवान् महाबीर ने कहा विषमतामों को दूर करने के लिये 'साम्यवाद' का है कि "संचय ही समस्त पापों का मल है।" प्रतः प्रयोग किया। सन्त विनोबा ने सामाजिक विषम. इस परिग्रह को अपरिग्रह से जीतने के लिए संचय
महावीर जयन्ती स्मारिका 71
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