________________
प्राज विश्व का वातावरण स्त्री स्वातंत्र्य और समानाधिकार के नारे से गुञ्जायमान हो रहा है। नारी को उचित अधिकार प्रदान कराने हेतु 'नारी वर्ष' मनाया जा चुका है किन्तु उसके अपेक्षित फल न होते देख अब वर्ष के स्थान में दशाब्दी मनाई जा रही है। भगवान् महावीर के अनुयायियों में स्त्री मुक्ति को लेकर पर्याप्त समय से मतभेद हैं। एक पक्ष उसका समर्थन करता है तो दूसरा उसका विरोध। दोनों ही अपने अपने पक्ष में प्रबल तर्क प्रस्तुत करते हैं किन्तु इस काल में स्त्री तो क्या पुरुष भी मुक्त नहीं हो सकता अतः वर्तमान में यह विवाद व्यर्थ है। फिर भी पाठक दोनों की युक्तियों से परिचित हो अपनी ज्ञानवृद्धि कर सकें तथा स्वतंत्ररूप से चिन्तन कर सकें एतदर्थ लेखकके 40 पृष्ठों के लम्बे . लेख का सार हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं । पाठक इसके अतिरिक्त और कोई अर्थ इसके प्रकाशन का न लगावें। , ..... प्र० सम्पादक .
सार संक्षेप
जैन तर्क-वाङ्मय में स्त्री मुक्ति का तार्किक विवेचन
* डा० लालचन्द जैन, वैशाली प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान दलसुख मालव- प्रकार पुरुष उसी भव से मुक्त हो सकता है रिणया के अनुसार स्त्री मुक्ति की दार्शनिक चर्चा व्य- उसी प्रकार स्त्री भी, क्योंकि कारण के मिलने वस्थित रूप से सर्वप्रथम यापनीय संघ के प्राचार्य पर कारण की निष्पत्ति होती है। ... शाकटायन ने अपने 'स्त्री मुक्ति प्रकरण' में की। इसके पश्चात् श्वेताम्बर और दिगम्गर दोनों
मोक्ष के कारणों में किसी भी कारण का आम्नायों के प्राचार्यों ने उसको आधार बना कर
अभाव स्त्रियों से नहीं है । प्रत्यक्ष, अनुमान तार्किक भित्ति पर स्त्रीमुक्ति का समर्थन और
या पागम किसी भी प्रमाण से स्त्रियों में विरोध किया। द्वादशांगी या मूलसूत्र, छेदसूत्र आदि
रत्नत्रय का प्रभाव सिद्ध नहीं किया जा में भी इसका स्पष्ट विवेचन दृष्टिगोचर नहीं
सकता। प्रत्यक्ष इन्द्रियज्ञान का विषय है होता। लेखक मालवणिया पूर्वोक्त मत से सह
जबकि रत्नत्रय प्रतीन्द्रिय । प्रत्यक्ष से प्रसिद्ध
विषय में अनुमान की गति नहीं है। किसी मत है।
भी आगम में स्त्रियों के रत्नत्रय का प्रभाव 1. मोक्ष का कारण रत्नत्रय प्राप्त होने पर जिस नहीं वताया है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
1-105
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org