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मतभेद नहीं अब रह पाये
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* मुनिश्री मानमलजी
मतभेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पाये 1 मन भेदों के कारण कितने धर्मों धर्मों में द्वन्द्व हुवा परिणाम भयंकर जहरीला बोलो कब उसका बन्द हुवा
शोषित की लाल कहानी फिर से न उभर कर मतभेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह ये पांचों 'गुलियाँ अपना श्रस्तित्व स्वयं का रखती हैं तन पोषण जब करना हो भोजन मिलमिल सब चखती हैं
ऐसा ही ऐक्य धर्म जग के नेता फिर दिखलायें मत भेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पायें ॥
झाडू का हर तिनका देखो यदि बिखर गया तो मिटता है धार्मिक नेताओ सुनो सुनो युग का स्वर जो अब उठता है
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आ पाये
पाये 11
प्रास्तिकता खतरे में सारी मिल कर चलना श्रब श्रा जाये मत भेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पाये ॥
('अहिंसा वाणी' से साभार )
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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