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प्रजातन्त्र का अर्थ है प्रजा द्वारा प्रजा की मलाई के लिए प्रजा पर शासन । महावीर ने स्व द्वारा स्व और पर की भलाई के लिए स्व पर नियन्त्रण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इसके लिए उन्होंने सर्वजन समभाव, सर्वधर्म समभाव, सर्वजाति समभाव पर बल दिया हमारे संविधान के ये मूलभूत आधार हैं । इनके बिना प्रजातन्त्र पंगु ही नहीं अस्तित्वहीन होगा। भगवान् महावीर सच्चे अर्थों में प्रजातांत्रिक थे। कैसे ? इसका उत्तर प्रापको मिलेगा विद्वान् लेखक को इन पंक्तियों में ।
प्र सम्पादक
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महावीर की प्रजातांत्रिक दृष्टि
० डा० निजाम उद्दीन, श्रीनगर
प्रजातन्त्र की सफलता स्वतन्त्रता, समानता, कारण शांतिमय वातावरण नहीं था, मताग्रह की वैचारिक उदारता, सहिष्णुता, सापेक्षता और प्रचण्ड प्रांधी ने सम्यग्ज्ञान व सम्यकदृष्टि का मार्ग दूसरे को निकट से समझने की मनोवृत्ति के विकास धुंधला कर दिया था। यही सब देख महावीर ने पर अवलम्बित है, इनके अभाव में गणतन्त्र का व्यक्ति स्वतन्त्र्य और प्राणी-साम्य का उद्घोष अस्तित्व संदिग्ध रहेगा । महावीर गणतन्त्र के प्रबल किया। समर्थक हैं, उनके उपदेशों में व्यक्ति स्वातन्त्र्य, सामाजिक साम्य, आर्थिक साम्य, धार्मिक साम्य,
स्वतन्त्रता की सिद्धि के लिए अहिंसा, सत्य आदि पर विशेष बल दिया गया है और यही गण- और ब्रह्मचर्य की त्रिवेणी में अवगाहन करना पडता तन्त्र के सुदृढ़ स्तम्भ है, यदि इनमें से कोई एक है । अहिसा के द्वारा हम सभी के साथ मैत्री भाव दुर्बल हो गया तो समझिए गणतन्त्र की प्राधार- स्थापित करते हैं और मैत्री भाव में समानता की शिला डगमगा जायेगी। महावीर का युग गण. मनोवृत्ति विद्यमान है। महावीर ने सभी प्राणियों तन्त्रीय तो था लेकिन वहां व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का से मैत्री भाव स्थापित करने और किसी को सर्वथा लोप था, पास-प्रथा इतनी व्यापक और मारने का, किसी भी प्रकार के कष्ट देने का निषेध दयनीय थी कि मनुष्य, मनुष्य का क्रीतदास बना किया है । यहां हम अपनी प्रात्मा के समान दूसरे हप्रा था। मनुष्य, मनुष्य के सर्वथा अधीनस्थ था, की आत्मा को महत्व देते हैं, अपने दुख के समान स्वामी का सेवक पर सम्पूर्ण अधिकार था। दास- दूसरे के दुख अनुभव करते हैं यानी 'आत्मवत् सर्व. दासी तथा नारी सभी का परिग्रह किया जाता था। भूतेषु' का चिरादर्श प्रस्तुत करते हैं। प्रजातन्त्र में महावीर के युग में जातीय भेदभाव की खाई बहुत भी अपने समान दूसरे की स्वतन्त्रता को महत्वपूर्ण चौड़ी थी। सामाजिक तथा आर्थिक वैषम्य के समझा जाता है, 'स्व' की सीमित परिधि को
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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