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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं
महात्मा गांधी ने स्वयं कहा है कि मेरी अहिंसा कोई किताबी सिद्धान्त नहीं है जो अनुकूल अवसर देखकर बतलायी जाय। यह वैसा सिद्धान्त है जिसे मैं सभी कार्य क्षेत्रों में लाने के प्रयत्न अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में कर रहा हूँ । आगे महात्मा गांधी ने लिखा है कि अहिंसा क्षत्रिय का धर्म है। महावीर क्षत्रिय थे, बुद्ध क्षत्रिय थे । वे सब थोड़े या बहुत अहिंसा के उपासक थे। हम उनके नाम पर भी अहिंसा का प्रवर्तन चाहते हैं । लेकिन इस समय तो अहिंसा का ठेका भीरु वैश्य वर्ग ने ले लिया है, इसलिये वह धर्म निस्तेज हो गया है। अहिंसा का दूसरा नाम है क्षमा की परिसीमा । लेकिन क्षमा तो वीर पुरुष का भूषण है । अभय के बिना अहिंसा नहीं हो सकती । x x x जीव लेना हमेशा हिंसा नहीं है । या यों कह लीजिये कि अनेक अवसरों पर जीव न लेने में अधिक हिंसा है ।" इसीलिये सनातन हिन्दू होने के बावजूद भी गांधी जी ने मृत्यु के मुख में पड़े गाय के बछड़े को डाक्टर से कहकर जहर की सुई दिलवाकर मरवा दिया । x x x किन्तु जो भी हो, उनकी आत्मा में करुणा तो इससे प्रकट होती ही है। इस तरह मानवीय करुणा और मानवीय तर्क से ओत-प्रोत गांधी जी की अहिंसा अधिक व्यावहारिक दीख पड़ती है । इस प्रकार यह बात प्रमाणित होती है कि गांधी जी की अहिंसा व्यावहारिक जीवन से काफी अंशों में जुड़ी हुई सी लगती है ।
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गांधीजी अहिंसा में व्यापक प्रेम और करुणा की भावना सन्निहित है । रोमा रोला ने इसी को अनन्त धैर्य और असीम प्रेम कहा है । उनके असहयोग आन्दोलन में जिनके प्रति असहयोग किया जाता था, उनके लिये घृणा नहीं वरन् प्रेम ही था । " यह अहिंसा की भावात्मक व्याख्या है जिसमें भगवान बुद्ध का मैत्री और करुणा, महावीर की मैत्री, करुणा, प्रमोद एवं माध्यस्थ और हिन्दू धर्म की जीव दया या भूत-दया की भावनाएँ हैं । इसी को ईसा मसीह भी अपनी भाषा में कहते हैंदुश्मनों से प्यार करो ।" विश्व को गांधी जी की अहिंसा की सबसे बड़ी व्यावहारिक देन है यह स्थापना कि संगठित हिंसा की भाँति ही हिंसा के निवारण के लिये अहिंसा को भी संगठित किया जा सकता है । युद्ध से युद्ध का निवारण नहीं हो सकता है ।
१. हिन्दी नवजीवन, २८ अक्टूबर १९२६
२. गांधी दर्शन मीमांसा, डा. रामजी सिंह, बिहार ग्रन्थ अकादमी, पृ० ७९
३. यंग इण्डिया ६।८।१६२५
४. गांधी दर्शन मीमांसा डा० रामजी सिंह, पृ० ८१
५. सॅट मैथ्यु ५०४४
परिसंवाद - ३
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