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गांधी: अहिंसा का व्यवहार पक्ष
इससे प्रतिहिंसाओं का क्रम चल पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका खेड़ा, चम्पारन इत्यादि में अहिंसक प्रतिकार के लिये जनमत को संगठित करके उन्होंने प्रयोग किये । सतत परीक्षण और प्रयोग से वह इस निश्चय पर पहुँचे कि अन्याय कि स्थिति भय के कारण ही सम्भव होती है। उन्होंने देखा कि अहिंसा में मानव जाति के प्रति एक ऐसी प्रबल शक्ति पड़ी हुई है जिसका कोई पार नहीं। मनुष्य की बुद्धि ने संसार के जो प्रचण्ड से प्रचण्ड अस्स्त्र-शस्त्र बनाये हैं उनसे भी प्रचण्ड यह अहिंसा की शक्ति है । अत: यह विफल तो कभी होती ही नहीं है।
___अहिंसा के विषय में सामान्य लोगों में यह भ्रम पैदा हो गया है कि अहिंसा दुर्बलों का अस्त्र है। किन्तु गांधी जी हमेशा कहा करते थे कि जहाँ भय है वहाँ अहिंसा हो ही नहीं सकती है। अहिंसा अभय की चरमावस्था है। निर्भयता और आत्मबल के बिना अहिंसा चल नहीं सकती।' उनकी अहिंसा में प्रतिहिंसा की भावना नहीं, अपितु क्षमा की भावना रहती है। प्रतिहिंसा भी एक प्रकार की दुर्बलता का ही द्योतक है किन्तु क्षमा वीरों का भूषण है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि अहिंसक प्रतिकार में हम वस्तुतः हिंसा का प्रतिकार नहीं करते, वरन् हम दुर्बलता से जूझते हैं। दुर्बल व्यक्ति के लिये पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म का कोई अर्थ नहीं है ।२ कायरतापूर्ण शांतिवाद से वीरतापूर्ण युद्ध कहीं अच्छा है । इसीलिये गांधी जी का सत्याग्रह किसी प्रकार का शक्तिहीन अध्यात्मवाद या निष्क्रिय प्रतिकार नहीं, वरन् अत्यन्त सक्रिय आध्यात्मिक शक्ति के रूप में प्रकट हुई। यंग इण्डिया . में उन्होंने कहा है कि अहिंसा वीरों का गुण है और इसे हम निष्क्रिय, दुर्बल और
और असहायपूर्ण अधीनता की संज्ञा नहीं दे सकते। इसलिये उन्होंने लोगों से स्पष्ट कहा कि यदि अहिंसक अन्तिम बलिदान को तैयार न हो, वहाँ आत्म-रक्षा ही धर्म है। अतः यह कहना कि गांधी जी की अहिंसा कायरों एवं दुर्बलों के लिये है, नितान्त गलत और भ्रमपूर्ण है।
___ महात्मा गांधी को अपने जीवन के अनुभवों में सत्याग्रह और अहिंसा का प्रयोग एक गुलाम देश के सम्बन्ध में ही करना पड़ा, परन्तु अपने अनुभवों के क्षेत्र को फैलाने और प्रभु-सत्ता सम्पन्न स्वशासित देशों में अहिंसा की शक्ति को अजमाने की सम्भावना उनके विचार में नहीं थीं; सम्भवतः ऐसी बात नहीं है। उन्होंने कई १. यंग इण्डिया, ४.११-१६२६ २. रोमा रोला: महात्मा गांधी : पृ० १२७ ३. यंग इण्डिया : ४-८-१९२०
परिसंवाद-३
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