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________________ सार्वजनिक चरित्र, न्याय तथा सामाजिक सेवा की भावना, सहकारिता के प्रति निष्ठा, कर्तव्यपराणयता, अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार के प्रतिरोध के संकल्प को स्वस्थ सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक मानते थे। प्राह्लद की भांति सत्याग्रहवादी थे। नचिकेता की भांति न्यायनिष्ठ थे। अवसरवाद को मूल्य न देते हुए हर कीमत पर न्याय की प्रतिष्ठा दिलाते थे। उनके लिए समाज का प्रत्येक व्यक्ति बराबर था, वह कहते थे कि मैं सच्चा मुसलमान हूँ क्योंकि मैं सच्चा हिन्दू हूँ (प्रो. जगन्नाय उपाध्याय)। वह शास्त्रवाद के विपरीत श्रद्धानुरोधी थे, श्रद्धा विवादों को समाप्त करते हुए एकमात्र कर्माचरण के माध्यम से मनुष्यों के बीच सम्बन्धों का नव निर्माण करती है। इसमें असीम नम्रता होती है क्योंकि नम्रता में समर्पण होता है। समर्पण में व्यक्ति स्व को पर के लिए मिटा देता है। श्रद्धा में समर्पण के साथ निर्देशकता मिलती है सत्य एवं अहिंसा की। इसीलिए गांधी कहते हैं-सत्य और अहिंसा की कुंजी से जब मैं धर्म की पेटी खोलता हूँ तो मुझे एक धर्म की दूसरे धर्म से एकता पहचानने में जरा भी कठिनाई नहीं आती (प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय)। फलतः वह आध्यात्मिक बन जाते हैं जिससे सबमें एकत्व भान का साक्षात्कार होने लगता है। और सबमें सत्य रूप परमेश्वर का साक्षात्कार होता है । सत्य ही परमेश्वर है। असत्य, अन्याय, अधर्म के प्रति उदासीन रहने वाला व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार नहीं कर सकती। अतः असत्य, अन्याय और अधर्म का प्रतीकार करना सत्याग्रह का आवश्यक अंग है। सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, अपितु स्वयं कष्ट उठाकर सत्य की रक्षा करना। इस सन्दर्भ में अहिंसा वह प्रकाश है जो सत्य को निखारती है। अहिंसा की पराकाष्ठा ही सत्य है, इसका जीवन में साधन के रूप में आचरण होना चाहिए। ईसा ने जिस प्रकार धूर्तों को जानते हुए भी दया को याचना की, ठीक इसी प्रकार विनम्रतापूर्वक सत्य का पालन करना होगा तथा व्यावहारिक सत्य पर जोर देना होगा। पुराण को एक कया है कोई बधिक मृग को मारने के लिए पीछा करते हुए ऋषि के आश्रम में पहुंचा, और उसका रास्ता पूछा तो ऋषि ने उत्तर दिया या पश्यति न सा ब्रूते या ब्रूते सा न पश्यति अर्थात् जो इन्द्रिय देखती है बह बोल नहीं सकती, और जो बोल सकती है वह देखती नहीं। गांधी जी भी अपने अंतरङ्ग व्यक्तियों से ऐसे प्रश्न उपस्थित होने पर कहते थे-आप इस बात को न पूछे। इस विषय पर हम कुछ नहीं कहेंगे (पं० रामप्रसाद त्रिपाठी)। इस प्रकार परानुग्रहेच्छा से प्रेरित हो इस कलियुग में गांधी जी सत्याचरण का पालन करते थे। हमें भी ऐसा करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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