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( ग )
स्वरूप क्या बनें ? इस पर भी प्रभूत चिन्तन प्रस्तुत किया गया है । यह चिन्तन केवल कपोल कल्पित नहीं प्रत्युत गांधी जी के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है जो दर्शन या चिन्तन को सैद्धान्तिक ही नहीं व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करते थे । और जिनके चिन्तन क्रम में बहुत सो पारम्परिक समस्यायें समाहित हुई हैं। देखना यह है कि क्या व्यक्तिनिष्ठ सत्य, अहिंसादिगुण समाजनिष्ठ बनाये जा सकते हैं या मात्र चिन्तन के विषय ही बनकर रह जायेंगे । इस सन्दर्भ में परिसंवाद का सत्य, अहिंसा का प्रयोग भाग भी बहुत उपयोगी है जिसमें मानव जीवन में इनको उतारने का शास्त्रीयनिदान प्रस्तुत किया गया है ।
[क]
व्यावहारिक जीवन को आदर्श एवं ठोस नीव पर रखने का काम गांधी ने किया था। आज गांधी विश्वविद्यालयों, राजनेताओं तथा सामाजिक संस्थाओं से बाहर हो गये हैं लगता है कि वे आज के युग में अपर्याप्त हैं। पर विचार करने पर लगता है कि गांधी आने वाले कल में उपयुक्त होंगे। यदि आने वाले कल में गांधीजी उपयुक्त लगते हैं तो वर्तमान में भी गांधी का मूल्य है ( नारायण भाई देसाई ) । उनका आदर्शवाद, रचनात्मक कार्यक्रम तथा सत्याग्रह आज भी मूल्यवान है । प्रदूषण का खात्मा, कुटीर उद्योग का चलाना, स्वदेशीपन आदि के गांधी की सीख का आज बहुत महत्त्व है । गांधी जी पवित्र साधनों के प्रयोग पर अधिक बल देते थे । अतएव अहिंसक साधनों से अहिंसक समाज की स्थापना करना, वह अपना लक्ष्य मानते थे । पर अपनी अहिंसा को पूर्ण नहीं मानते थे ( राजाराम शास्त्री) क्योंकि यदि पूर्ण होती तो निर्धारित उद्देश्यों की विफलता न होती । फिर भी वह गीता के कर्मण्येवाधिकारस्ते के नजदीक थे तथा साधन की पवित्रता के पोषक थे। वह जो प्राणिमात्र का अधिक हितकारक होता था उसे सत्य कहते थे (यद्भूतहितमत्यन्तं तत्सत्यम् ) । जनकल्याण सत्य की परख है, अन्तःकरण कसौटी और अहिंसा साधन (प्रो० मुकुट बिहारीलाल) । वह व्यक्ति अथवा समाज के सुधार के पूर्व अपना सुधार करना चाहते थे । और संभवतः यही मानव सुधार का रास्ता है। गांधीजी स्त्री एवं पुरुष की समता के समर्थक थे। वह वर्णाश्रमवादी थे, ट्रस्टीशिप तथा विकेन्द्रित लोकतन्त्र के समर्थक थे । उत्कृष्ट
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