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सुधारवादी मूलचिन्तक एवं परिवर्तनवादी- पारम्परिकधारा का नये जीवनक्रम में कैसे उपयोग किया जाय ? इसका ही विश्लेषण प्रस्तुत परिसंवाद में उपलब्ध है ।
चिन्तन के नये आयाम प्रस्तुत करने की दृष्टि से इन गोष्ठियों में परम्परावादी तत्त्वचिन्तन के आधार पर दर्शनों का नया वर्गीकरण प्रस्तुत करने का सुझाव रखा गया है । इसमें एक पक्ष नये वर्गीकरण के पक्ष में है तथा दूसरा पूर्ण रूप से पूर्वतः वर्तमान दार्शनिक वर्गीकरण को ही चलाये रखने के पक्ष में है । नये वर्गीकरण को प्रस्तुत करने वाले परम्परावादी विद्वान् कालिक समस्याओं के समाधान के लिए नये तत्त्व चिन्तन की भी अपेक्षा करते हैं । पूर्ण परिवर्तनवादी पारंपरिकधारा भी सुधारवादी मूलचिन्तकों के पक्ष में है । पर दोनों में समुदायगत श्रेष्ठता का प्रश्न कभी कभी आड़े हाथ आ रहा है । इस विषम परिस्थिति में कालिक समस्याओं के आधार पर निर्णय लिया जाना स्वाभाविक है । इन समस्याओं का समाधान भी दोनों ही धारायें कर सकती हैं और गोष्ठी के संयोजकों की मंशा भी इन्हीं विचारधाराओं के पक्ष में है ।
दर्शनों के नये वर्गीकरण की समस्या के समाधान क्रम में नये चिन्तन का प्रश्न भी बार बार खड़ा होता हुआ दिखाई देता है और इस क्रम में तीनों प्रकार की विचारधारायें नये चिन्तन के लिये प्रयत्नशील होती हैं। आधुनिक किन्तु परिवर्तनवादी पारम्परिक धारा वाले लोग परम्परा की बिना परवाह किये हुए समस्याओं के समाधान के क्रम का दर्शन बनाने के पक्ष में हैं और कहते हैं कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो समस्यायें स्वतः नया दर्शन प्रस्तुत करा देगीं, जैसा कि पश्चिम के देशों में इसके विरोध में हुआ है । पर सुधारवादी मूलचिन्तक समाधान की खोज में आधुनिक विद्वानों का परम्परागत ढंग से समाधान ढूढ़ने में सहयोग लेना चाहते हैं । इस सन्दर्भ में परम्परावाद की सहृदयता का मूल्य आंका जाना चाहिए। क्योंकि आधुनिकता के पर्याप्त प्रभाव के बावजूद हमारी सामाजिक समस्याओं का निदान जो • स्पष्टतर रूप में नहीं प्राप्त हो रहा है, सम्भवतः वह अपनत्वविहीन समाधान होने के कारण हैं । ऐसी स्थिति में सुधारवादी मूलचिन्तकों के साथ आधुनिकतावादी को सहयोग देना आवश्यक लगता है। और यदि यह प्रवृत्ति खुलकर समस्याओं का का समाधान ढूंढ़ रही है तो निश्चित ही बहुत सी समस्यायें स्वतः समाहित हो • जायेंगी ।
araहारिक चिन्तन तथा सैद्धान्तिक चिन्तन का पक्ष भी इसी परिसंवाद में दिखलाई देता है | दर्शनों का नया वर्गीकरण, नया दर्शन कैसे ? जैसे प्रश्न सिद्धान्त रूप से कालिक समस्याओं के समाधान का सैद्धान्तिक चिन्तन प्रस्तुत करने के लिए . वाध्य करते हैं । वैसे ही सत्य, अहिंसा, समता, समाज, व्यक्ति आदि का व्यावहारिक
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