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हिंसा अभय की चरमावस्था है । निर्भयता और आत्मबल के बिना अहिंसा चल नहीं सकती । अहिंसक प्रतीकार में हम वस्तुतः हिंसा का प्रतिकार नहीं करते, वरन हम दुर्बलता से जूझते हैं । दुर्बल व्यक्ति के लिए पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म का कोई अर्थ नहीं होता । कायरतापूर्ण शांति से वीरतापूर्ण युद्ध अच्छा है, अतः गांधी का सत्याग्रह युद्ध शक्तिहीन अध्यात्मवाद नहीं, प्रत्युत सक्रिय आध्यात्मिक शक्ति है ( वीरेन्द्रप्रताप सिंह ) | गांधी ने स्वयं कहा है अहिंसा वीरों का गुण है और इसे हम निष्क्रिय, दुर्बल और असहायपूर्ण अधीनता की संज्ञा नहीं दे सकते ।
भारत में हिंसा के दो रूप हैं भावहिंसा तथा द्रव्यहिंसा । क्रोधादि से प्रेरणापूरक हिंसा द्रव्यहिंसा है तथा कलुषित चित्त रागद्वेषादि से प्रेरित हिंसा हिंसा है | अहिंसा का वास्तविक अर्थ इन दोनों का न करना है । १६१६ में गांधीजी ने कहा- तुम किसी मनुष्य का चित्त न दुःखाओ और जो मनुष्य तुम्हें अपना शत्रु समझता हो, उसके विषय में कभी कोई बुरा भाव न रखो। (महाप्रभुलाल गोस्वामी) । गांधीजी ने आन्तरिक दृष्टि से अहिंसा की प्रतिष्ठा में प्रेम तथा क्षमा की स्थापना की तथा घृणा की निवृत्ति पर बल दिया है पर व्यावहारिक जीवन में अहिंसा की स्थापना की गति में भेद है, इस प्रकार जहाँ अहिंसक स्थिति की ओर झुकाव यदि दिखाई देता है तो वह भय प्रयुक्त ही है । कहीं भीं विश्व के सबल राष्ट्रों का निःशस्त्रीकरण की ओर अग्रसर होना प्रेम-प्रेरित न होकर भय-प्रेरित है ( प्रो० रघुनाथगिरि) । इसी प्रकार गांधी का सत्य भी अधिक आदर्श रूप है जब कि शंकराचार्य व्यवहार के लिए सत्यानृत का मिथुनीकरण स्वीकार करते हैं । गांधी इन दार्शनिक तथ्यों की विवेचना करते हुए भी मानवहित पर अधिक बल देते हैं । फलतः सर्वोदय की कामना, सर्वधर्मसमभाव की स्थापना तथा न्यासिता के सिद्धान्त से लोकहितसम्पादन का अहिंसक मार्ग बतलाते है जिसका जीवन में प्रयोग किया जा सकता है ।
मानवता की रक्षा के लिए गांधी की अनिवार्यता किंगमा टिंगलूथर ने भी स्वीकारा किया है । गांधी मानवता की रक्षा इसलिए कर सके, क्योंकि वह आत्मशुद्धि पर बल देते थे । आत्मशुद्धि से ईश्वर साक्षात्कार होता है । पूर्ण शुद्धता की स्थिति में स्थितप्रज्ञता आती है, वह परम कारुणिक तथा करुणावतार बोधिसत्त्व है । वह जन जन में ईश्वर का साक्षात्कार करते है, और कहते थे, वह मात्र सत्ता है, वह सबमें है, सबसे ऊपर है, हम सबसे परे है, ( डा० रेवतीरमण पाण्डेय )
गांधी केवल आध्यात्मिक ही नहीं जन कल्याण के प्रवर्तक हैं । वह मानव कल्याण के कई रास्ते बतलाते हैं, उनमें उनकी बुनियादी शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए उनका हस्तकलात्मक शिक्षण रामवाण है ।
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