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Vaishali Institutc Research Bullctin No. 8
(४) औदयिक भाव- यह उदय से पैदा होता है। उदय एक प्रकार का आत्मिक
मालिन्य है, जो कर्म के विपाकानुभव से होता है। जैसे—मैल के मिल जाने पर
जल मलिन हो जाता है। (५) पारिणामिक भाव- पारिणामिक भाव, द्रव्य या परिणाम है, जो द्रव्य के अस्तित्व
से अपने-आप होता है। किसी भी द्रव्य का स्वभाविक स्वरूप परिणमन ही पारिणामिक भाव है।
उपर्युक्त पाँचों भाव ही आत्मा के स्वरूप हैं। ये भाव अजीव में नहीं होते हैं। ये पाँचों भाव जीव में एक साथ भी नहीं होते हैं। संसारी या मुक्त कोई भी आत्मा हो, उसके सभी पर्याय इन पाँच भावों में से किसी न किसी भाववाले ही होगें । मुक्त जीवों में दो भाव होते हैं—क्षायिक और पारिणामिक । संसारी जीवों में कोई तीन भावोंवाला, कोई चार भावोंवाला, कोई पाँच भावोंवाला होता है, पर दो भावोंवाला कोई नहीं होता। अर्थात् मुक्त आत्मा के पर्याय दो भावों तक और संसारी आत्मा के पर्याय तीन से लेकर पाँच भाँवों तक पाये जाते हैं। अतएव पाँच भावों को जीव का स्वरूप जीवराशि की अपेक्षा से या किसी जीव-विशेष में सम्भावना की अपेक्षा से कहा गया है। औदयिक भाववाले पर्याय वैभाविक और शेष चारों भाववाले पर्याय स्वाभाविक हैं। उक्त पाँचों भाव के कुल ५३ भेदों का उल्लेख है।
औपशमिक भाव जीव के स्वरूप हैं, पर वे न तो सभी आत्माओं में पाये जाते हैं और न त्रिकालवर्ती हैं। त्रिकालवर्ती एवं सब आत्माओं में पाया जानेवाला एक ही भाव है-पारिणामिक भाव, जिसका फलित अर्थ उपयोग है । दूसरे सभी भाव कभी होनेवाले कभी नहीं होनेवाले, कतिपय लक्ष्यवर्ती एवं कर्मसापेक्ष होने से जीव के उपलक्षण कहला सकते हैं। साधारण जिज्ञासुओं के लिए एक ऐसा लक्षण उमास्वाति ने अपने तत्त्वार्थसूत्र में बताया है, जिससे आत्मा की सही पहचान हो जाती है । आत्मतत्त्व (जीवतत्त्व) का लक्षण या गुण : ___ 'उपयोगो लक्षणम्११, अर्थात् जीव का लक्षण उपयोग है। आत्मा लक्ष्य है और उपयोग लक्षण । संसार में उपयोग द्वारा चेतन यानी जीव की पहचान होती है। उपयोग क्या है? बोध-रूप व्यापार को उपयोग कहते हैं। बोध का कारण चेतन-शक्ति है। चेतन-शक्ति आत्मा में ही होती है, जड़ में नहीं। आत्मा में अनन्त गुण-पर्याय हैं। उनमें मुख्य उपयोग ही है। जानने की शक्ति समान होने पर भी जानने की क्रिया सब आत्माओं में समान नहीं होती। यहाँ जीव के विभेदक गुण पर प्रकाश डाला गया है। जैसे—मनुष्य का विभेदक गुण विवेक है, उसी प्रकार जीव का विभेदक गुण उपयोग है।
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