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जैन दर्शन में आत्मतत्त्व : एक विश्लेषण
किसी भी प्रकार के आकार- विशेष से रहित है । अतः आत्मा पुद्गल द्रव्य से सर्वथा भिन्न है । इन विशेषताओं के अतिरिक्त आत्मा में चेतना-गुण अधिक है। यही चेतना जीव (आत्मा) का स्वरूपाधायक तत्त्व है ।
आचार्य उमास्वाति ने आत्मा के स्वरूप (भाव) का वर्णन करते
औपशमिक क्षायिकौ भावौ मिश्र जीवस्य स्वतत्त्व
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मौदयिकपारिणामिकौ च ।
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अर्थात् औपशमिक, क्षायिक और मिश्र ( क्षायोपशमिक) तथा औदयिक और पारिणामिक कुल पाँच जीव के भाव (स्वरूप) हैं |
आत्मा के स्वरूप के सम्बन्ध में जैनदर्शन का अन्य दर्शनों के साथ कैसा मन्तव्य - भेद है, यही बतलाना प्रस्तुत सूत्र का उद्देश्य है । सांख्य और वेदान्त - दर्शन, आत्मा को कूटस्थ नित्य मानते हैं तथा उसमें कोई परिणाम नहीं मानते । वे ज्ञान, सुख-दुःखादि परिणामों को प्रकृति या अविद्या के ही मानते हैं, आत्मा के नहीं । वैशेषिक और नैयायिक ज्ञान आदि को आत्मा का गुण मानते हैं, फिर भी वे आत्मा को एकान्तनित्य (अपरिणामी ) मानते है । नव्य-मीमांसक - मत वैशेषिक और नैयायिक जैसा ही है। बौद्धदर्शन के अनुसार, आत्मा एकान्त क्षणिक, अर्थात् निरन्वय परिणामों का प्रवाह मात्र मानते हैं । विभिन्न क्षणों में होनेवाला सुख-दुःख ज्ञानादि परिणाम ही सत्य है । उनके बीच अखण्ड स्थिर तत्त्व की सत्ता नहीं है। जैन दर्शन का कथन है कि जैसे प्राकृतिक जड़ पदार्थों में न तो कूटस्थ नित्यता है और न एकान्त क्षणिकता, किन्तु परिणामिनित्यता है, वैसे ही आत्मा के स्वरूप (भाव) है । ये पर्याय भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में लक्षित होते है । अतः आत्मा का स्वरूप पाँच प्रकार का बतलाया गया है :
हुए कहा है :
(१) औपशमिक भाव- यह उपशम से उत्पन्न होता है । उपशम एक प्रकार की आत्म शुद्धि है, जो सत्तागत कर्म का उदय बिलकुल रुक जाने पर होती है; जैसे मल तल में बैठ जाने पर जल स्वच्छ हो जाता है I
(२) क्षायिक भाव-क्षय से उत्पन्न होता है । क्षय आत्मा की वह परमविशुद्धि है, जो कर्म का सम्बन्ध बिलकुल छूट जाने पर प्रकट होती हैं जैसे सर्वथा मल के निकल जाने पर जल नितान्त स्वच्छ हो जाता है ।
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(३) क्षायोपशमिक भाव—यह क्षय और उपशम से उत्पन्न होता है । यह एक प्रकार की आत्मिक शुद्धि है, जो कर्म के एक अंश का उदय सर्वथा रुक जाने पर और दूसरे अंश का प्रदेशोदय द्वारा क्षय होने पर प्रकट होता है। जैसे—कोदो के धोने पर कुछ मादक द्रव्य क्षीण हो जाता है और कुछ रह जाता है ।
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