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जैन दर्शन में आत्मतत्त्व : एक विश्लेषण
उपयोग का अर्थ चेतनता है, अतः जीव का विभेदक गुण चेतनता है । सूत्रकार, • उपयोग और चेतनता में कुछ अन्तर बताना चाहते हैं । चेतनता को हम देख नहीं सकते हैं । इसके गुण को नहीं देख सकते हैं, लेकिन इसकी अभिव्यक्ति को देखते हैं । चिह्न के आधार पर हम किसी जीव में चेतनता को जानते हैं। चेतनता का चिह्न है विचारना, संचेतना, अर्थात् यही चेतना का चिह्न उपयोग है ।
वस्तुतः, चेतना का प्रतीक ही उपयोग है। चेतना का जो क्रियान्वित रूप है, वह उपयोग है, और यही उपयोग जीव का लक्षण है। उपयोग जीव का आत्मभूत लक्षण है, यह जीव को छोड़कर अन्य द्रव्यों में नहीं पाया जाता है। जिसमें उपयोग नहीं पाया जाता है, वह अचेतन (जड़) है। इसलिए यहाँ उपयोग को जीव का लक्षण कहा है I
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अतः,
जीव का जो भाव वस्तु को ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त होता है, उसे उपयोग कहते हैं या चेतना की परिणति विशेष का नाम उपयोग है । चेतना सामान्य गुण है और ज्ञान, दर्शन ये दो इसकी पर्याय या अवस्थाएँ हैं, इन्हीं को उपयोग कहते हैं ।
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सद्विविधोऽष्टचतुर्भेदः । १२
उपयोग दो प्रकार का है, आठ प्रकार का है तथा चार प्रकार का है । कुन्दकुन्दाचार्य ने उपयोग का भेद करते हुए कहा है:
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saओगो खलु दुविहो णाणेण य दंसणेण संजुत्तो । जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूतं वियाणीहि ॥
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उपयोग के दो मूल विभाग हैं— ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। ऐसी चेतनक्रिया जो ज्ञान को प्राप्त करा दे, वह ज्ञानोपयोग है तथा ऐसी चेतनक्रिया, जो दर्शन को प्राप्त करा दे, वह दर्शनोपयोग है।
ज्ञानोपयोग के आठ भेद हैं, अर्थात् सूत्रकार जो उपयोग के आठ भेद बताये हैं वह ज्ञानोपयोग का है, दर्शनोपयोग का नहीं । मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान, ये यथार्थ पाँच प्रकार के ज्ञान और तीन अयथार्थ — कुमति, कुश्रुत और कुअवधि मिलकर उपयोग के आठ भेद होते हैं । जैसा कि आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है:
आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभयाणि ।
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कुमदि सुदविभगाणि य तिण्ण वि णाणेहिं संजुत्ते ॥'
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दर्शनोपयोग के चार भेद हैं । अर्थात् उपयोग के जो चार प्रकार कहे गये हैं, वह दर्शनोपयोग के ही भेद हैं, जो इस प्रकार हैं- (१) चक्षुदर्शन, (२) अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन और (४) केवलदर्शन ।
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