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________________ पर जोर दिया तथा जैनशास्त्र के विद्वानों को जैनसिद्धान्तों में प्रतिपादित सम्भावनाओं को साकार करने का आह्वान किया । जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं के कुलपति एवं प्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक डा. रामजी सिंह ने अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में जीवन की वास्तविक समस्याओं के समाधान ढूँढ़ने में दार्शनिक सिद्धान्तों के पुनर्मूल्यांकन की महत्ता पर प्रकाश डाला। उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ संस्थान के निदेशक के स्वागत-अभिभाषण तथा समापन मानव संसाधन विकास विभाग, बिहार सरकार के उपनिदेशक (प्रशासन) श्री गोरख प्रसाद के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। स्वागत-अभिभाषण में संस्थान के निदेशक ने इस संस्थान के मूल उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। धन्यवाद-अभिभाषण में श्री प्रसाद ने अत्याधुनिक विश्व में तेजी से फैलते धार्मिक उन्माद एवं कट्टरपन को दृष्टि में रखते हुए वैशाली-भूमि में आयोजित इस संगोष्ठी के सन्देश का अनुसरण एवं प्रसार करने का आह्वान किया। इन सभी सम्मान्य महानुभावों एवं विद्वानों के अभिभाषण प्रस्तुत अंक में अक्षरित हैं। तिरहुत प्रमण्डल के शास्त्रज्ञ आयुक्त एवं संस्थान की कार्यकारिणी एवं प्रकाशन समिति के अध्यक्ष श्री ए. के. विश्वास ने इस शोध-संकलन में अपना महार्घ प्राक्कथन लिखकर इसकी गरिमा बढ़ाई है। संगोष्ठी में परिचर्चाएँ तीन सत्रों में सम्पन्न हुईं। विभिन्न सत्रों में प्रस्तुत शोधपत्रों के विवेच्य विषय संक्षेप में इस प्रकार हैं : जैन इतिहास एवं पुरातत्त्व सत्र की अध्यक्षता भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डा. भगवती शरण वर्मा ने की। _ इस सत्र में प्रस्तुत शोधपत्रों में डॉ. पीयूष गुप्ता ने जैनकला में नवग्रह पूजा-पद्धति का रोचक विश्लेषण प्रस्तुत किया। डॉ. विजयकुमार ठाकुर ने प्राकृत के कालजयी कथाग्रन्थ 'समराइच्चकहा' के आधार पर मध्य भारत के सामन्ती युग की संस्कृति को चित्रित किया। श्री उमेशचन्द्र द्विवेदी ने बिहार के छोटानागपुर क्षेत्र में जैन कला के विकास को रेखांकित किया। डा. प्रफुल्ल कुमार सिंह 'मौन' ने जैन पुरातत्त्व की दृष्टि से विदेह तथा मिथिला की महत्ता पर प्रकाश डाला । श्री विन्ध्येश्वर प्रसाद हिमांशु ने जैनधर्म के तीर्थंकरों, आचार्यों एवं जैन वाङ्मय का विवेचन प्रस्तुत किया। डॉ. शुभा पाठक ने अपने शोध-निबन्ध में तिरेसठ शलाकापुरुषों के जीवन से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं तत्कालीन सांस्कृतिक एवं पुरातात्त्विक महत्त्व को उजागर किया। डॉ. अरविन्द महाजन ने श्रीलंका में जैनधर्म के प्रभाव को संक्षिप्त रूप में वर्णित किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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