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________________ सम्पादकीय प्राकृत-जैनशास्त्र और अहिंसा शोध-संस्थान के तत्त्वावधान में दिनांक ६ और ७ नवम्बर, १९९२ ई., को द्विदिवसीय राष्ट्रीय जैनशास्त्र संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस समारोह की सफलता का श्रेय संस्थान की कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष एवं तिरहुत प्रमण्डल के मनीषी आयुक्त उदारचेता श्री ए. के. विश्वास (भा. प्र. से.) को जाता है, जिन्होंने मूल्यवान् मार्गदर्शन के साथ-साथ उक्त संगोष्ठी की सफलता के प्रति अपनी उत्कण्ठा व्यक्त कर हमारे अन्तर्मन में अदम्य उत्साह एवं अपने नाम की अन्वर्थता के अनुरूप सुदृढ़ विश्वास का संचार किया। फलत: बहुविध कठिनाइयों के बावजूद पूरे देश से जैनविद्या के प्रतिनिधि विद्वानों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति, वैदुष्यपूर्ण शोधपत्र-प्रस्तुति एवं शास्त्रसिक्त विषय-परिचर्चा में सक्रिय भागीदारी से समारोह को सार्थक बनाया। संस्थान की कार्यकारिणी समिति ने उक्त संगोष्ठी की कार्यवाही को प्रकाशित करने का निर्णय किया था। प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य दो दिनों तक प्राकृत-जैनशास्त्र विषय पर आयोजित परिचर्चा के सारभूत सन्देश का व्यापक प्रसार तथा उदात्त जनकल्याणकारी आर्हत विचारों को जनसामान्य तक पहुँचाना था। तदनुरूप यह प्रकाशन जैनविद्या के अनुरागियों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए अपार हर्ष हो रहा है। उक्त संगोष्ठी में जिन विद्वानों ने अपने शोधगर्भ व्याख्यान दिये, उनके लिखित रूप किन्हीं कारणों से हमें समय पर प्राप्त नहीं हो सके। अत: इस शोध-संकलन में उनके शोधाक्षरों का समावेश अभीष्ट ही रह गया। फिर भी उन विद्वानों की सक्रिय भागीदारी हेतु मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता निवेदित करता हूँ। संगोष्ठी का समुद्घाटन माननीय पद्मश्री के. एन. प्रसाद (भा. आ. से.) असम सरकार के पूर्व वरीय परामशी ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने वर्तमान युग में वैशाली के शलाकापुरुष भगवान् महावीर एवं बुद्ध के उपदेशों की प्रासंगिकता पर बल दिया तथा उन्हें जीवन में उतारने का आह्वान किया। मगध विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के सेवानिवृत्त आचार्य एवं अध्यक्ष डा. बसन्त कुमार लाल ने अपने विषय-प्रवर्तक शोधपत्र में भारतीय दर्शनों में निहित विचारों एवं सिद्धान्तों को नये परिवेश में व्याख्यायित करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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