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में कवि ने उक्त नेमिचन्द्र के रामचन्द्र, श्रीचन्द्र एवं विमलचन्द्र नामक तीन पुत्रों के नामोस्लेख भी किये हैं।
__ उक्त आश्रयदाता नेमिचन्द्र वोदउनगर के निवासी थे । कवि ने असुर-ग्राम में बैठकर यह रचना की थी । उक्त वोदाउ उत्तरप्रदेश का वर्तमान जिला 'बदाऊँ' प्रतीत होता है । कवि हरयाणा निवासी था । सम्भवत: असुहर ग्राम भी हरयाणा में होना चाहिए । बहुत सम्भव है कि यह असुहर ग्राम घिसता-पिटता एवं रूप परिवर्तन करता हुआ आजकल का हिसार नगर ही हो ।
विबुध श्रीधर ने अपनी रचना में पूर्ववर्ती किसी ग्रन्थ या ग्रन्थकार का उल्लेख नहीं किया फिर भी अध्ययन करने से प्रतीत होता है कि कवि महाकवि असग एवं पुष्पदन्त के वर्द्धमान चरितों से प्रभावित रहा है, किन्तु अपभ्रंश के क्षेत्र में वर्द्धमान चरित सम्बन्धी विबुध श्रीधर कृत वड्ढमाण चरिउ सर्वप्रथम स्वतन्त्र रचना है तथा परवर्ती अपभ्रंश कवियों में 'वड्ढमाण कव्वु' के प्रणेता जयमित्र हल्ल (अपरनाम हरिचन्द, वि० सं० १५ वी शती), 'सम्मइजिण चरिउ' के प्रणेता महाकवि रइधू (अपरनाम सिंहसेन वि० सं० १४४०-१५३०) तथा 'वड्ढमाण कहा' के प्रणेता कवि णरसेन (वि० सं० १४ वीं१५ वीं शती) ये कवि श्रीधर के चिर ऋणी रहेंगे ।
विबुध श्रीधर ने अपने 'वडूढमाण चरिउ' को २५०० ग्रन्थ प्रमाण कहा है उसमें कुल सन्धियाँ १० एवं कडवक संख्या-२३१ हैं ।
उक्त वडूढमाण चरिउ की कथावस्तु का मूलाधार दिगम्बर मान्यता प्राप्त कथावस्तु है। कवि ने प्रथम आठ सन्धियों में भगवान महावीर की पूर्वभवावली प्रस्तुत कर अन्तिम दो सन्धियों में उनके पांचों कल्याणकों का वर्णन किया है ।
वर्णन-प्रसंगः-- 'वडूढमाण चरिउ' में देश, नगर एवं ग्रामों के प्रचुर वर्णन मिलते हैं । इन वर्णनों में अप्रस्तुत-योजना द्वारा उनके उत्कर्ष की अभिवृद्धि की योजना के साथ ही अनेक स्वाभाविक चित्रण भी प्राप्त होते हैं । ग्राम्य जीवन की झांकियाँ तो अनुपम ही हैं । धान के लहलहाते खेत, उनकी मेढ़ों पर शुक भगाती हुई ग्राम्य-कन्याएँ, मधुर कण्ठ से गीत गाती हुई हालिनियाँ, गोधन से परिपूर्ण ग्राम, दधिमन्थन-रव तथा गोप-गोपिकाओं के विविध हास-विलास के जीवन्त चित्र अंकित हैं। इसी प्रकार नगर एवं देश-वर्णनों में भी कवि को उड़ाने कुलाचे भरती हुई प्रतीत होती हैं । (१ । ३)
इसी प्रकार कवि ने मगध, विदेह, राजगृह, कुण्डग्राम आदि के वर्णन भी किये हैं, जिनमें वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य, धन-धान्य, राजभवन, ऐश्वर्य आदि के मनोहारी वर्णन चित्रित हैं। इनके अतिरिक्त प्रातः एवं सन्ध्या वर्णन (७ । १५-१६), वन- उपवन, नदी, सरोवर आदि के भी अलंकृत शैली में वर्णन किए हैं। उनमें उपमा, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों की छटा दर्शनीय है ।
चक्रवतियों, सम्राटों एवं राजाओं के वर्णन-प्रसंगों में कवि ने उनके शौर्य एवं पराक्रम की खुलकर चर्चाएँ की हैं । उस माध्यम से कवि ने शत्रु-राजाओं को ललकारें, योद्धाओं की दर्पोक्तियाँ, रणबांकुरों की हुंकारें एवं तुमुल-युद्ध के वर्णन-प्रसंगों में वीर, रौद्र एवं बीभत्स रसो की उद्भवनाएँ की हैं (५१७) ।
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