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जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २
इस तरह अज्ञात कवि द्वारा प्राकृत में रचित यह शतकत्रय नीति, धर्म, एवं वैराग्य विषय की एक महत्त्वपूर्ण रचना है । विभिन्न पाण्डुलिपियों के अध्ययन से इसका प्रामाणिक संस्करण तैयार करने की जरूरत है । हिन्दी अनुवाद के साथ यदि यह प्रकाशित किया जाय तो स्वाध्याय के लिये यह उपयोगी ग्रन्थ होगा । भर्तृहरि के शतकत्रय की भांति विद्वत्जगत् इस प्राकृत शतकत्रय से भी परिचित हो सकेंगे 18
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8. इस शतकत्रय की पाण्डुलिपि की प्राप्ति हेतु पं. दयाचन्द्र जी शस्त्र, व्यवस्थापक, ऐ० पन्नालाल सरस्वती भवन, उज्जैन के प्रति आभार ।
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